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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूमिया देवता उत्तराखंड || Earth god uttarakhand || earth god's temple of uttarakhand || earth god's of uttarakhand india 🌎

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via https://youtu.be/xzKEz74-Pa8 उत्तराखंड  🇮🇳🇮🇳की स भ्यता सं स्कृति🙏 # pankajdevbhoomi 🙏🙏                          भूमिया देवता    {भूमसेन, क्षेत्रपाल } भूमिया देवता को भूमि का रक्षक  देवता  माना जाता है, इसी वजह से इन्हें  क्षेत्रपाल  भी कहा जाता है. ... मैदानी इलाकों में इन्हें  भूमसेन  देवता के नाम से भी जाना जाता है. भूमिया देवता की पूजा एक प्राकृतिक लिंग के रूप में की जाती है.  भूमिया देवता  के जागर भी आयोजित किये जाते है, उत्तराखण्ड  में भूमिया देवता के मंदिर प्रायः हर गाँव में हुआ करते हैं. भूमिया देवता को भूमि का रक्षक देवता माना जाता है, इसी वजह से इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है. खेतों में बुवाई किया जाने से पहले पहाड़ी किसान बीज के कुछ दाने भूमिया देवता के मंदिर में बिखेर देते हैं. विभिन्न पर्व-उत्सवों के अलावा रबी व खरीफ की फसल पक जाने के बाद भी भूमि या देव ता की पूजा अवश्य की जाती है. फसल पक जाने पर फसल की पहली बालियाँ  भूमिया देवता  को ही चढ़ाई जाती हैं और फसल से तैयार पकवान भी. सभी मौकों पर पूरे गाँव द्वारा सामूहिक रूप से भूमिया देवता का पूजन किया ज

छुरमल देवता || history of churmal devta || Sri churmal devta temple || pankajdevbhoomi

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via https://youtu.be/I3cp0tvRJ90 उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi   छुरमल को सोर-पिथौरागढ़ के उत्तरी क्षेत्रों में पूजा जाता है. लोकपरम्प रा के अनुसार छुरमल के पिता का नाम कालसिण था. दोनों पिता-पुत्र की कहानी एक दूसरे से गहरे जुड़ी हुई है. छुरमल का मुख्य देवस्थल सतग ढ़ के ऊपर स्थित पहाड़ पर कालसिण के मंदिर के समीप ही है. छुरमल के मंदिर कत्यूरघाटी के तैलीहाट में, थान गांव (मल्ला कत्यूर) में, धाड़चौड़ ( डीडीहाट ) की पहाड़ी पर, अस्कोट में देवचूला क्षेत्र में, धनलेख में जहां इसे धनलेख देवता के नाम से भी जाना जाता है तथा जोहार के डोरगांव आदि स्थानों पर स्थापित हैं. जोहार में ‘ छुरमल पुजाई’ के नाम से भादपद मास के शुल्क पक्ष में एक उत्सव (मेले) का भी आयोजन किया जाता है. वर्षा ऋतु के अतिरिक्त इसकी पूजा शुक्ल पक्ष में कभी भी की जा सकती है. कहीं-कहीं दोनों एक साथ ही आमने-सामने भी स्थापित किये गये हैं, किन्तु एक देवालय में कहीं भी नहीं. छुरमल (सूर्यपुत्र) का मूल नाम सम्भवतः सूर्यमल रहा होगा जो कि उच्चारणात्मक सौकर्य के कारण कालान्तर में छुरमल के रूप में विकसित

लाटू देवता मंदिर || Latu devta mysterious || उत्तराखंड के देवी देवता

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वाया https://youtu.be/_Ompt3cmIcU उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳 की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 एक अनोखा मंदिर (     लाटू देवताव ) यूं तो आप भी हमारे देश में स्थित मंदिरों से जुड़ी कई अद्भुत कहानियां सुनाएंगे लेकिन आज हम आपको एक अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां भक्त का प्रवेश ही वर्जित है। जी हां, इस मंदिर में किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो अमीर हो या गरीब, सेलिब्रिटी हो या किसी राजनेता की इज्जत नहीं है। यहां तक ​​कि मंदिर के पुजारी को भी पूजा-आराण करने के लिए कई सूचनाओं का पालन करना पड़ता है । श्रध्दालुओं को इस मंदिर में आना मना है। सिर्फ यही नहीं, यहां के पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर भगवान की पूजा करनी पड़ती है। जो भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं वे मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रोमी पूजा-पाठ करना होता है और इसी से वो अपनी मनचाही मुराद भी मांगते हैं। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लॉक में ये मंदिर स्थित है। इस मंदिर को देवस्थल लाटू मंदिर का नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती

भैरव देवता || शिव के पांचवें स्वरूप || bhariav DEVTA katha || bhariav devta jager || bhariav devta temple

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via https://youtu.be/oqEMAZ1Pcl8  भैरवनाथ विष्णु के अंश भगवान शिव के पांचवें स्वरूप शिव के सेनाध्यक्ष श्री भैरवनाथ को महाकाल तथा काल  भैरव के नाम से भी जाना जाता है।  इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती   है।  भोले भंडारी शिव भोलेनाथ की पूजा से पूर्व  काल भैरव की पूजा होती है। ऐसा वरदान भोलेनाथ ने काल भैरव को दे रखा है। इन्हें उग्र देवता माना जाता है मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री काल  भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं।  जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का  नाश करने में समर्थ हैं।  इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र  प्रसन्न हो जाते हैं।  भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं। भगवान शिव की सेना में 11 रुद्र, 11 रुद्रिणियां, चौंसठ   योगिनियां , अनगिनत   मातृकाएं तथा 108 भैरव हैं। कलिका पुराण में वर्णन है कि बालक गणेश ने सिर कट ने से पहले  इन

गंगनाथ देवता || गंगनाथ मंदिर अल्मोड़ा || देवभूमि उत्तराखंड

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उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 Video गंगनाथ देवता देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में ताकुला के पास सतराली गाँव में स्थित भगवान शिव के रूप “ गंगनाथ देवता ” को समर्पित हैं | यह मंदिर ताकुला के हरे भरे क्षेत्र के हसीन वादियों के बीच में स्थित पर्यटकों को अपनी ओर अत्यधिक आकर्षित करता हैं | गंगनाथ को स्थानीय लोगों द्वारा कुल देवता के रूप में पूजा जाता हैं एवम् गंगनाथ देवता को समर्पित अन्य मंदिर भी उत्तराखंड के अन्य जिले और क्षेत्रो में स्थपित हैं जैसी कि पिथौरागढ़ , नैनीताल और अल्मोड़ा आदि | गंगनाथ मंदिर पेड़ के हवाई जड़ों से शिवलिंग से निकलते पानी के लिए प्रसिद्ध है | यह मंदिर खूबसूरत परिवेश के बीच में धार्मिक महत्व के रूप में प्रसिद्ध हैं | कार्तिक पूर्णिमा के दौरान मंदिर में आकर्षक मेला का आयोजन किया जाता हैं , जिसके द्वारा गंगनाथ देवता के प्रति लोगों की आस्था प्रतीत होती हैं | गंगनाथ देवता के द्वारा में यह कहा जाता हैं कि कहते हैं गंगनाथ देवता ज्यादातर बच्चों व खूबसूरत औरतों को चिपटता है। जब कोई भूत प्रेत से सताया जाता है या किसी अन्यायी

उत्तराखंड के देवी - देवता || क्यों पुजे जाते हैं देवी-देवता || Goddess of Uttarakhand

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via https://youtu.be/x3EJSk42atU infometion uttrakhand devi devta part2 video in youtube follw #devbhoomipankaj