भूमिया देवता उत्तराखंड || Earth god uttarakhand || earth god's temple of uttarakhand || earth god's of uttarakhand india 🌎
via https://youtu.be/xzKEz74-Pa8
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भूमिया देवता {भूमसेन, क्षेत्रपाल }
भूमिया देवता को भूमि का रक्षक देवता माना जाता है, इसी वजह से इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है. ... मैदानी इलाकों में इन्हें भूमसेन देवता के नाम से भी जाना जाता है. भूमिया देवता की पूजा एक प्राकृतिक लिंग के रूप में की जाती है. भूमिया देवता के जागर भी आयोजित किये जाते है,
उत्तराखण्ड में भूमिया देवता के मंदिर प्रायः हर गाँव में हुआ करते हैं. भूमिया देवता को भूमि का रक्षक देवता माना जाता है, इसी वजह से इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है. खेतों में बुवाई किया जाने से पहले पहाड़ी किसान बीज के कुछ दाने भूमिया देवता के मंदिर में बिखेर देते हैं. विभिन्न पर्व-उत्सवों के अलावा रबी व खरीफ की फसल पक जाने के बाद भी भूमिया देवता की पूजा अवश्य की जाती है. फसल पक जाने पर फसल की पहली बालियाँ भूमिया देवता को ही चढ़ाई जाती हैं और फसल से तैयार पकवान भी. सभी मौकों पर पूरे गाँव द्वारा सामूहिक रूप से भूमिया देवता का पूजन किया जाता है. मैदानी इलाकों में इन्हें भूमसेन देवता के नाम से भी जाना जाता है. भूमिया देवता की पूजा एक प्राकृतिक लिंग के रूप में की जाती है. भूमिया देवता के जागर भी आयोजित किये जाते हैं.
पर्वतीय अंचल के अलावा तराई की थारू व बुक्सा जनजातियों में भी भूमिया देवता की बहुत ज्यादा मान्यता है. इन जनजातियों में इन्हें भूमिया व भूमसेन दोनों ही नामों से जाना जाता है. थारू जनजाति द्वारा इनके मंदिर की स्थापना पीपल या नीम के पेड़ के तले ऊंचा चबूतरा बनाकर की जाती है.
बुक्सा जनजाति भूमसेन मंदिर की स्थापना गाँव के मुखिया के घर के सामने नीम या किसी अन्य पुष्पित वृक्ष के तले करती है. मुखिया द्वारा रोज इसकी पूजा की जाती है. हर त्यौहार और फसलचक्र पर देवता को भेंट भी चढ़ाई जाती है.
पर्वतीय अंचल में कई गाँवों के नाम भी भूमिया देवता के नाम पर रखे जाते हैं.
अपसंस्कृति की मार से भूमिया देवता भी अछूते नहीं रहे. आधुनिकीकरण की दौड़ में भूमिया देवता के ग्राम्य देवता से सामान्य देवता में बदलते जाने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, पिछले सालों में सबसे अधिक मंदिर हल्द्वानी, कालाढूंगी, लालकुआं और रामनगर में स्थापित हुए हैं। ऊधमसिंह नगर के खटीमा में बड़ी संख्या में पहाड़ के लोकदेवताओं के मंदिर हैं।
पहले लोग साल में एक बार लोकदेवता को पूजने के लिए मूल गांव आते थे, लेकिन अब यह प्रवृत्ति भी खत्म हो रही है। इसकी वजह गांव में बचे इक्का-दुक्का परिवारों का भी पलायन कर जाना है। प्रोफेसर चंद बताते हैं कि पहले यही परिवार प्रवासियों के लिए गांव में पूजा-पाठ का इंतजाम करते थे। इनके गांव छोड़ने के बाद लोक देवताओं को विस्थापित करना लोगों की मजबूरी हो गया है। .
नैनीताल-ऊधमसिंह
लालकुआं में भूमिया देवता
पहाड़ों में भूमिया देवता के मंदिर हर गांव में होते थे। उन्हें भूमि का रक्षक माना जाता है। डॉ. जोशी कहते हैं कि नैनीताल के लालकुआं में बड़ी संख्या में लोग आकर बसे। इसलिए ज्यादातर जगह भूमिया देवता के मंदिर हैं।
तराई क्षेत्र में भूमिया देवता
तराई क्षेत्र में भी भूमसेन और भूमिया देवता को कृषि और भूमि का रक्षक देवता माना जाता है. यहाँ इनका सम्बन्ध क्षेत्रीय सिद्धपुरुषों से माना जाता है तथा इनके बारे में कई जनश्रुतियां भी प्रचलित हैं.
कहीं-कहीं भूमिया देवता का मंदिर हर गाँव में न बनाकर कुछेक गाँवों के बेचों-बीच बनाया जाता है. कहीं-कहीं रबी की फसल की कटाई के बाद भूमिया देवता को पशुबलि देकर भी पूजा जाता है. भूमिया देवता को विभिन्न आपदाओं का संरक्षक देवता भी माना जाता है.
पलायन के बाद पहाड़ों पर लोक देवताओं के मूलस्थान संकट में हैं। हालात ये हैं कि मंदिरों में सुबह-शाम दीपक जलाने के लिए भी लोग नहीं हैं। दशकों पहले पलायन कर चुके लोग इष्ट देवताओं के मंदिरों को भी तराई-भाबर में स्थापित करने लगे हैं।
by
pankaj tewari
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