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उत्तराखंड की संस्कृति रहन-सहन, खानपान || उत्तराखंड लोक नृत्य, पर्व, त्योहार

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via https://www.youtube.com/watch?v=zlIo5IpEOHM Devbhoomi India 🇮🇳  उत्तराखंड: देवभूमि की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत उत्तराखंड, जिसे "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, केवल प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना ही नहीं है, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का केंद्र भी है। यहां की संस्कृति में परंपरा, अध्यात्म, लोककला और प्रकृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।  लोकगीत और लोकनृत्य: आत्मा की अभिव्यक्ति उत्तराखंड के लोकगीत और नृत्य यहां की संस्कृति की जान हैं। "झोड़ा", "छपेली", "थडिया" और "रामलीला" जैसे नृत्य और गीत यहां के लोगों की भावनाओं और परंपराओं को प्रकट करते हैं। पर्वतीय जीवन की कठिनाइयों और खुशियों को ये लोककला बेहद सुंदर तरीके से व्यक्त करती है। विशेष अवसरों और त्योहारों पर इन्हें प्रस्तुत किया जाता है। पहनावा और आभूषण: परंपरा की झलक उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान भी यहां की संस्कृति को समृद्ध बनाते हैं। महिलाएं अक्सर अंगड़ा, घाघरा और पिछौड़ा पहनती हैं, जबकि पुरुष धोती-कुर्ता और हिमाचली टोपी धारण करते हैं। यहां के आभूषण, जैसे नथ, गुलबंद और...

उत्तराखंड की कला और संस्कृति ||Art and Culture of Uttarakhand || folk art of uttarakhand

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via https://youtu.be/FNYiOvseuBU Devbhoomi india  मूर्तिकला  उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास   उत्तराखण्ड के मंदिरों में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड में मूर्ति कला किसी समय अपने उत्कर्ष पर रही होगी । अधिकांश प्राप्त मूर्तियाँ शिव , विष्णु , हर गौरी , पार्वती , गणेश , नंदा , कार्तिकेय , काली , दुर्गा , गरुड़ आदि की हैं । मूर्तियाँ अधिकांशतया जागेश्वर , उखीमठ , कालीमठ , बद्रीनाथ , गोपेश्वर , जोशीमठ , अल्मोड़ा , द्वाराहाट आदि स्थलों पर दृष्टिगत होती हैं । बहुत सी मूर्तियाँ 8 वीं से 12 वीं सदी के मध्य निर्मित की गयी हैं । मूर्तियाँ में प्राप्त हुई हैं । टूटी - फूटी अवस्था आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया इन्हें 19 वीं सदी में रोहिला था ।  चित्रकला उत्तराखंड की कला और संस्कृति  चित्रकला रूप से प्रोत्साहन गढ़वाल के पंवार वंशी राजाओं ने चित्रकला को विशेष दिया । सुलेमान शिकोह के साथ श्यामदास और केहरदास नाम के चित्रकार श्रीनगर में आये थे । उन्होंने श्रीनगर में चित्रकला का प्रचार किया । उनके बाद मंगतराम और ...