गंगनाथ देवता || गंगनाथ मंदिर अल्मोड़ा || देवभूमि उत्तराखंड
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गंगनाथ देवता
देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में ताकुला के पास सतराली गाँव में स्थित भगवान शिव के रूप “गंगनाथ देवता” को समर्पित हैं | यह मंदिर ताकुला के हरे भरे क्षेत्र के हसीन वादियों के बीच में स्थित पर्यटकों को अपनी ओर अत्यधिक आकर्षित करता हैं | गंगनाथ को स्थानीय लोगों द्वारा कुल देवता के रूप में पूजा जाता हैं एवम् गंगनाथ देवता को समर्पित अन्य मंदिर भी उत्तराखंड के अन्य जिले और क्षेत्रो में स्थपित हैं जैसी कि पिथौरागढ़ , नैनीताल और अल्मोड़ा आदि | गंगनाथ मंदिर पेड़ के हवाई जड़ों से शिवलिंग से निकलते पानी के लिए प्रसिद्ध है | यह मंदिर खूबसूरत परिवेश के बीच में धार्मिक महत्व के रूप में प्रसिद्ध हैं | कार्तिक पूर्णिमा के दौरान मंदिर में आकर्षक मेला का आयोजन किया जाता हैं , जिसके द्वारा गंगनाथ देवता के प्रति लोगों की आस्था प्रतीत होती हैं | गंगनाथ देवता के द्वारा में यह कहा जाता हैं कि कहते हैं गंगनाथ देवता ज्यादातर बच्चों व खूबसूरत औरतों को चिपटता है। जब कोई भूत प्रेत से सताया जाता है या किसी अन्यायी के फंदे में फंसता है , तो वह गंगनाथ के ही शरण में जाता है और उसकी गंगनाथ अवश्य रक्षा करते हैं । अन्यायी को दंड और भूत प्रेतबाधा को दूर करते हैं । गंगनाथ को पाठा छोटा बकरा, पूरी मिठाई माला वस्त्र जोगिया झोला जोगियों की बालियां और भाना को आंगड़ी, चद्दर नथ बच्चे को कोट तथा कड़े चढ़ाए जाते हैं । उत्तराखंड के अनेको क्षेत्रो में गंगनाथ देवता को गंगनाथ चाचर , गद्याली अन्य रूप में पूजा जाता हैं |
गंगनाथ देवता कहानी
गंगनाथ देवता के बारे में कुछ इस तरह कहा जाता हैं कि गंगनाथ डोटी देश (नेपाल) के राजा भवेचन्द का पुत्र था। उसकी माता का नाम प्योंला रानी था । वह बचपन से ही सरल स्वभाव के थे तथा उनका राजपाठ , यश , धन और वैभव में कोई रूचि नहीं थी। एक बार गंगनाथ अपने सेवको और राज कर्मचारियों के साथ उत्तरायणी मेला देखने बागेश्वर “बागनाथ” जाते हैं । मेले में उसकी मुलाकात दन्या के किशना जोशी की पत्नी “भाना” से हो जाती हैं और उसके सौंदर्य और स्वभाव को देखकर पहली मुलाकात में ही दोनों को एक दुसरे से प्रेम हो जाता हैं | राजकुमार गंगनाथ भाना को पाने का स्वप्न देखने लगते हैं । और एक रात्रि में वह स्वप्न में “भाना” को देखते हैं जिसमे “भाना” ने उनसे कहती हैं कि आप संन्यास ले लो और जोगी बन कर अल्मोड़ा जिले में स्थित “दन्या क्षेत्र” में आकर मुझसे मुलाकात करो । तभी हम दोनों का मिलन हो सकेगा । मेरे पति किशना जोशी अल्मोड़ा राज्य में दीवान हैं और वह वहीं रहते हैं ।
अगले दिन गंगनाथ झोला चिमटा लेकर अपना राज्य छोड़ महाकाली नदी पार करके संन्यासी बनने की अभिलाषा लेकर सोर पिथौरागढ़ पहुंच जाते हैं और वहां से राजकुमार गंग काली कुमाऊं होते हुए हरिद्वार पहुंचते हैं और शिव अवतार गुरु गोरखनाथ से सन्यास धर्म की दीक्षा लेते हैं और उन्हें गुरु गोरखनाथ द्वारा दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्ति प्रदान हैं | सन्यास धर्म की दीक्षा की शिक्षा प्राप्त कर गंगनाथ साधु वेश में दन्या क्षेत्र में आते हैं और वह भाना के घर के निकट धूनी रमाकर कुटिया बनाकर रहने लगते हैं । ऐसे करते करते वह प्रतिदिन चोरी चुपके भाना से मिला करते थे और जल्द ही बहाना गर्भवती हो जाती हैं | ग्रामीणों को गंगनाथ और भाना के प्रेम सम्बन्ध का पता चलता हैं तो सभी ग्रामीण लोग उसके पति जोशी दीवान को मामले की जानकारी देते हैं और जैसे ही जोशी को जब भाना गंगनाथ के प्रेम प्रसंग के बारे में मालूम होता है तो वह भाना , गंगनाथ और वर्मी बाला को मौत के घाट उतारने की योजना बनाता है । लेकिन जोशी को जब यह पता चलता हैं कि गंगनाथ के शरीर में जब तक बाबा गोरखनाथ के दिए गए दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्ति हैं , तब तक उनका कभी कोई अनिष्ठ नहीं कर सकता हैं | तो वह होली के दिन गंगनाथ को बिना दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गई शक्तिया को बिना धारण किये देखते हैं तो अचानक धोखे से गंगनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता है और फिर तीनों की निर्मम हत्या कर दी जाती है , मरने से पूर्व भाना श्राप देती है कि पर्वत का वह अंचल सूख जाएगा और हरियाली नष्ट हो जाएगी । इस श्राप का डर खाकर बाद में यहां देवताओं के रूप में स्थापना की जाती है और तभी से गंगनाथ को कुल देवता के रूप में पूजा जाने लगा | गंगनाथ देवता को कुमाऊ क्षेत्र के अनेको जिले एवम् क्षेत्रो में कुल देवता के रूप में पूजा जाता हैं |
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