लाटू देवता मंदिर || Latu devta mysterious || उत्तराखंड के देवी देवता


वाया https://youtu.be/_Ompt3cmIcU

उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳 की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏

एक अनोखा मंदिर (   लाटू देवताव )

यूं तो आप भी हमारे देश में स्थित मंदिरों से जुड़ी कई अद्भुत कहानियां सुनाएंगे लेकिन आज हम आपको एक अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां भक्त का प्रवेश ही वर्जित है।
जी हां, इस मंदिर में किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो अमीर हो या गरीब, सेलिब्रिटी हो या किसी राजनेता की इज्जत नहीं है। यहां तक ​​कि मंदिर के पुजारी को भी पूजा-आराण करने के लिए कई सूचनाओं का पालन करना पड़ता है श्रध्दालुओं को इस मंदिर में आना मना है। सिर्फ यही नहीं, यहां के पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर भगवान की पूजा करनी पड़ती है।

जो भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं वे मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रोमी पूजा-पाठ करना होता है और इसी से वो अपनी मनचाही मुराद भी मांगते हैं।
यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लॉक में ये मंदिर स्थित है। इस मंदिर को देवस्थल लाटू मंदिर का नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती है।

इस मंदिर के कपाट पूरे साल में सिर्फ एक बार खुलते हैं। वैशाख माह की पूर्णिमा को लाटू मंदिर के कपाट खुलते हैं। इस दिन लाटू मंदिर की पुजारी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट जाम हैं। भक्तजन पूरे दिन दूर से ही भगवान के दर्शन कर उनका आशीष ले सकते हैं।

अन्य लोककथाओं के अनुसार 


लोककथा के अनुसार लाटू मूल रूप से कन्नौज का रहने वाला था। एक दफा वह हिमालय की यात्रा पर निकला। इसी यात्रा के क्रम में जब वह गढ़वाल के चमोली में स्थित वाण गांव पहुंचेगा तो वहां के निवासी बिष्ट जाति के लोगों ने अपने व्यवहार से खुश होकर उससे रुक जाने का आग्रह किया। उसे भी रहने के लिए बहुत पसंद किया गया और उसने गाँव के लोगों के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। उसे गांव के ऊपरी हिस्से में रहने के लिए फ्लैट दिया गया, जिसे दोदा का मैदान कहा जाता था। वह दिखने पर घर में रहने लगता है।
इसी जगह शौका समुदाय की एक उम्र भी रही थी। एक दिन एक वृद्धा के पास पेड़ का पेड़ खुला और वह पानी देने लगा। वृद्धा ने लाटू से कहा कि वह झोपड़ी के अंदर घड़े से निकालकर खुद ही पानी पी ले। जब लाटू नींद के अंदर गया तो उसे दो घड़े दिखाई दिए। उन्होंने इनमें से एक घड़े का तरल पी लिए। इन घड़ों में से एक में पानी और एक में शराब रखी जाती थी। गलती से लाटू ने शराब वाले घड़े को पानी समझकर पी लिया।

अत्यधिक शराब पीने से उसकी मौत हो गई। वाण गांव के बिष्ट लोगों ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया। खामिलधार में उसकी याद में एक पाषाण लिंग की स्थापना भी कर दी गई।

 दर्ज की एक गाय रोज उस जगह पर जाकर गौमूत्र से उस पाषाण लिंग को स्नान करवाती और अपना सारा दूध वहीं पर दुह देती थी। हर शाम गाय के मालिक का दिन भर रहने वाला उसका थन खाली था। उसे किसी के रोज गाय को दुहने का शक हो गया। इसी शक के चलते उसने गाय का पीछा किया और उसने देखा की गाय अपना सारा दूध उस लिंग पर दुहती है। आशंकित होकर उसने लिंग पर वार किया और उसे दो भागों में विभाजित कर दिया। इसके बाद उस पूरे इलाके में महामारी फैल गई। कहा जाता है कि इसके बाद अल्मोड़ा निवासी किसी व्यक्ति के सपने में वान गांव गिरा पड़ा वह लिंग दिखाई दिया और सपने में ही उसे देवों ने उस स्थान पर मंदिर बनाने का भी आदेश दिया। वह जल्दी से वान गांव संदेश और दो नाम कि जगह पर उस खंडित लिंग की स्थापना कर एक मंदिर का निर्माण किया। इससे और गांवों के लोग सभी मुसीबतों से दूर हो गए।

वाण गांव में लाटू के इस मंदिर के कपाट हमेशा बंद रहते हैं। यह नंदा जात के स्थलों पर कुछ ही काम के लिए कार्यक्षेत्र हैं। माँ नंदा की डोली जब भी यहाँ से दिखती है तो उनकी डोली-छंतोली यहाँ पर लाटू से खाता लेती है। उसके बाद यहां से लाटू का प्रतीक लेकर ही यात्रा के लिए आगे बढ़ा है। प्रति वर्ष गिरने वाली नंदा जात और बारह वर्ष में होने नंदा राजजात में लाटू देवता का महत्व बहुत अधिक है। वाण से आगे पार्वती का सुसुराल माना जाता है और यहां से आगे नंदा के भाई के रूप में लाटू के प्रतीक ही उन्हें शिव के पास हिमालय छोड़कर आते हैं।

लोगों का मानना ​​है


कुछ लोगों का मानना ​​है कि विशाल नाग देखकर कहीं पुजारी डर न जाए इस कारण से पुजारी की आंखों में पट्टी चिपकी जाती है तो कुछ लोगों का मानना ​​है गर्भगृह में विराजमान नागमणि के दर्शन ने पुजारी की आंखों की स्थिति जा सकती है जिससे आंखों में पट्टी बन सकती है अपराध किया जाता है। देवभूमि उत्तराखंड
द्वारा 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

निरंकार देवता उत्तराखंड || Nirankar Devta Story In Hindi || nirankar devta jager

बागनाथ मंदिर (बागेश्वर) || bageshwar uttarakhand india || About bageshwar