भैरव देवता || शिव के पांचवें स्वरूप || bhariav DEVTA katha || bhariav devta jager || bhariav devta temple


via https://youtu.be/oqEMAZ1Pcl8

 भैरवनाथ

विष्णु के अंश भगवान शिव के पांचवें स्वरूप शिव के सेनाध्यक्ष श्री भैरवनाथ को महाकाल तथा काल
 भैरव के नाम से भी जाना जाता है।
 इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती   है।
 भोले भंडारी शिव भोलेनाथ की पूजा से पूर्व
 काल भैरव की पूजा होती है। ऐसा वरदान भोलेनाथ ने काल भैरव को दे रखा है। इन्हें उग्र देवता माना जाता है
मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री काल
 भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं।
 जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का
 नाश करने में समर्थ हैं।
 इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र
 प्रसन्न हो जाते हैं।
 भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं। भगवान शिव की सेना में 11 रुद्र, 11 रुद्रिणियां, चौंसठ
 योगिनियां, अनगिनत
 मातृकाएं तथा 108 भैरव हैं। कलिका पुराण में वर्णन है कि बालक गणेश ने सिर कटने से पहले
 इन्हीं से युद्ध किया था इसीलिए
भोलेनाथ इन्हें वीरभद्र के नाम से भी पुकारते है

भैरव उत्पत्ति 


उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के
 दो भाग हो गए- पहला बटुक
 भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और 
दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में
भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है।
 भगवान शिव के
 पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
लोक देवता : लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव 
आदि नामों से जाना जाता है।
 कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर
 स्थानीय परम्परा का हिस्सा है।
 यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते।


पालिया महाराज

 सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे 
हैं दरअसल वे उन मृत
 आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है। ऐसे किसी 
स्थान का भगवान भैरव से
कोई संबंध नहीं। उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं है।



भैरव मंदिर 

 भैरव का प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। काल भैरव का
 उज्जैन में और बटुक
भैरव का लखनऊ में मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर
 स्थित है। दूसरा नई
दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा
 उज्जैन के काल भैरव की
 प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव 
मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
 यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित
 भैरव मंदिरों का महत्व माना
गया है।

काल भैरव

काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का
 साहसिक युवा रूप है।
 उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है।
 व्यक्ति में साहस का संचार
 होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है।
काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।।

बटुक भैरव

'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'- अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है।

 बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना 
शीघ्र फलदायी है।
 यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

उक्त आराधना के लिए मंत्र है-

।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।भैरव तंत्र : योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने

 देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
भैरव आराधना से शनि शांत : एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना
 का दिन रविवार
और मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना
 गया है। उक्त माह के
 रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे 
नहीं बल्कि उसे भरपेट
 भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ
 रखें। पवित्र होकर ही
सात्विक आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है।

भैरव चरित्र


भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति
 एक डर और उपेक्षा
 का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है
 जैसा कि उनका चित्रण
किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही
 सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के
 लिए प्रस्तुत करना।
 जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो
 कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है।

बटुक भैरव 


 '
बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप
 की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
उक्त आराधना के लिए मंत्र है,

।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
भैरव तंत्र : योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के
 लिए भगवान शिव
 ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है।
भैरव आराधना से शनि शांत : एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है। आराधना 
का दिन रविवार और
 मंगलवार नियुक्त है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है।
 उक्त माह के रविवार को
 बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं। आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे
 भरपेट भोजन कराएं। जुआ,
 सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। दांत और आंत साफ रखें। पवित्र होकर 
ही सात्विक
 आराधना करें। अपवि‍त्रता वर्जित है।

भैरव चरित्र  

भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति
 एक डर और उपेक्षा का
भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा
 कि उनका चित्रण किया
गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, 
सात्विक और साहसिक है।

by 
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