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🌴 आयुर्वेदीक दवा ||Chaff Tree || आंधीझाड़ा या चिरचिटा

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उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳 की सभ्यता ,संस्कृति 🙏 से आपको जोड़ने की कोशिश 🙏🙏 उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति से जोड़ी जानकारी कै लिए पेज को फोलो करें , जय देवभूमि जय उत्तराखंड जय हिन्द #उत्तराखंड का इतिहास , Devbhoomiindia यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान से कम नही आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree), लटजीरा कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल

परमवीर चक्र || हवलदार अब्दुल हमीद- 1965 ||

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  भारत के वीर लोगों के लिए होंगे valentine'sday, हमारे लिए हमारे वीर जवान है, देवभूमि इन 7 दिनों में परमवीर चक्र विजेताओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहा है, जो आप सभी को पता होनी चाहिए अब्दुल हमीद- 1965 हवलदार  1 जुलाई 1933 में उत्तरप्रदेश के गाजीपुर स्थ‍ित धरमपुर गांव में जन्मे वीर अब्दुल हमीद कुश्ती के दांव-पेंच, लाठी चलाना और गुलेल से निशानेबाजी में माहिर थे। उन्होंने 1954 में 21 वर्ष की आयु में वे सेना में भर्ती हुए और 27 दिसंबर 1954 को ग्रेनेडियर्स इंफ्रैंट्री रेजीमेंट में शमिल हो गए। जम्मू-कश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद द्वारा एक पाकिस्तानी आतंकवादी डाकू इनायत अली को पकड़वाने पर प्रोत्साहनस्वरूप पदोन्नति मिली और वे लांसनायक बना दिए गए Devbhoomi india 10 सितंबर 1965 में जब पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण किया गया, तब अमृतसर को घेरने की तैयारी में आगे बढ़ती पाकिस्तानी सेना को मजा चखाते हुए अब्दूल हमीद ने जान की परवाह न करते हुए अपनी तोपयुक्त जीप से दुश्मन के 3 टैं‍क ध्वस्त कर दिए। इस बात से तिलमिलाए पाक अधिकारियों ने उन्हें घेरकर हमला कर दिया और दुश्मन की गोलीबारी में

जिया रानी का इतिहास || जिया रानी की कहानी || History of Jiya Rani || कुम...

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जिया रानी जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी। सन 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा। मौला देवी, राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी। मौला रानी से 3 पुत्र धामदेव, दुला, ब्रह्मदेव हुए, जिनमें ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से जन्मा मानते हैं। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया। जिया रानी के मेला उत्तराखंड में मनाए जाने वाला मकर संक्रांति का मेला रानीबाग (जिया रानी) हल्द्वानी में आयोजित किया जाता है। उसकी क्या क्या विशेषता है और कौन-कौन से आप मंदिर यहां पर मिलेंगे। आपको देखने को उसकी जानकारी में आज की वीडियो में आप लोगों को दे रहा हूं। यहां पर शनिदेव का मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित मंदिर जिया रानी की गुफाएं और साथ में शीतला देवी नाम से एक घागरा प्रसिद्ध है , तो आईये जानते हैं इस मेले को जिया रानी के मेले के नाम से भी जाना जाता है। Follow more inf

Ganesh chaturdshi ||

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uttrakhand history parmote in uttrakhand... एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा? खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया। Follow एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग||Mallikarjuna jyotirlinga temple india || Mallikarjuna jyotirlinga story||

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via https://youtu.be/MzK4T3d1ZuQ दोस्तों और की विडियो में हम जानें मल्लिकार्जुन मंदिर के इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है, JYOTIRLINGA TEMPLE INDIA DEVBHOOMI INDIA 

MAA BAARAHI MANDIR DEBIDHURA UTTARAKHAND || BAGWAL MELA || देवीधुरा || debidhura Mela ||बग्वाल मेला

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via https://youtu.be/13LEFrovH1A #बग्वाल #उत्तराखंड का राजकीय मेला..  #बग्वाल का अर्थ होता है , पत्थरों की बारिश या पत्थर युद्ध का अभ्यास। पत्थर युद्ध पहाड़ी योद्धाओं की एक विशिष्ट सामरिक प्रक्रिया रही है। महाभारत में इन्हे पाषाण योधि ,अशम युद्ध विराशद कहा गया है। जिस प्रकार वर्षाकाल की समाप्ति पर पर्वतों के राजपूत राजाओं द्वारा युद्धाभ्यास किया जाता था। ठीक उसी प्रकार छोटे -छोटे ठाकुरी शाशकों या मांडलिकों द्वारा भी वर्षाकाल की समाप्ति पर पत्थर युद्ध का अभ्यास किया जाता था जिसे बग्वाल कहा जाता था । कहा जाता है कि चंद राजाओं के काल में पाषाण युद्ध की परम्परा जीवित थी। उनके सेना में कुछ सैनिकों की ऐसी टुकड़ी भी होती थी ,जो दूर दूर तक मार करने में सिद्ध हस्त थी। बग्वाली पर्व के दिन इसका प्रदर्शन भी किया जाता था। कुमाऊं में पहले दीपावली के तीसरे दिन भाई दूज को बग्वाल खेली जाती थी इसलिए इस पर्व को बग्वाली पर्व भी कहा जाता है। पत्थर युद्ध पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग हुवा करता था। इसका सशक्त उदाहरण कुमाऊं की बूढी देवी परम्परा है। कुमाऊं में पहले कई स्थानो में बग्वाल खेली ज

लाटू देवता मंदिर || Latu devta mysterious || उत्तराखंड के देवी देवता

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वाया https://youtu.be/_Ompt3cmIcU उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳 की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 एक अनोखा मंदिर (     लाटू देवताव ) यूं तो आप भी हमारे देश में स्थित मंदिरों से जुड़ी कई अद्भुत कहानियां सुनाएंगे लेकिन आज हम आपको एक अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां भक्त का प्रवेश ही वर्जित है। जी हां, इस मंदिर में किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो अमीर हो या गरीब, सेलिब्रिटी हो या किसी राजनेता की इज्जत नहीं है। यहां तक ​​कि मंदिर के पुजारी को भी पूजा-आराण करने के लिए कई सूचनाओं का पालन करना पड़ता है । श्रध्दालुओं को इस मंदिर में आना मना है। सिर्फ यही नहीं, यहां के पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर भगवान की पूजा करनी पड़ती है। जो भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं वे मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रोमी पूजा-पाठ करना होता है और इसी से वो अपनी मनचाही मुराद भी मांगते हैं। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लॉक में ये मंदिर स्थित है। इस मंदिर को देवस्थल लाटू मंदिर का नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती