उत्तराखंड की कला और संस्कृति ||Art and Culture of Uttarakhand || folk art of uttarakhand


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 मूर्तिकला 
उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास

 उत्तराखण्ड के मंदिरों में अनेक देवी देवताओं की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड में मूर्ति कला किसी समय अपने उत्कर्ष पर रही होगी । अधिकांश प्राप्त मूर्तियाँ शिव , विष्णु , हर गौरी , पार्वती , गणेश , नंदा , कार्तिकेय , काली , दुर्गा , गरुड़ आदि की हैं । मूर्तियाँ अधिकांशतया जागेश्वर , उखीमठ , कालीमठ , बद्रीनाथ , गोपेश्वर , जोशीमठ , अल्मोड़ा , द्वाराहाट आदि स्थलों पर दृष्टिगत होती हैं । बहुत सी मूर्तियाँ 8 वीं से 12 वीं सदी के मध्य निर्मित की गयी हैं । मूर्तियाँ में प्राप्त हुई हैं । टूटी - फूटी अवस्था आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया इन्हें 19 वीं सदी में रोहिला था । 

चित्रकला
उत्तराखंड की कला और संस्कृति

 चित्रकला रूप से प्रोत्साहन गढ़वाल के पंवार वंशी राजाओं ने चित्रकला को विशेष दिया । सुलेमान शिकोह के साथ श्यामदास और केहरदास नाम के चित्रकार श्रीनगर में आये थे । उन्होंने श्रीनगर में चित्रकला का प्रचार किया । उनके बाद मंगतराम और मौलाराम ने का निर्माण किया । इनके द्वारा निर्मित चित्र गुगल शैली से प्रभावित थे । चित्र राजाओं ( पंवार वंशी ) तथा प्रकृति से सम्बन्धित हैं । ऐपण या अल्पना- उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र के ब्राह्मण तथा शाह जाति के लोगों में एक विशिष्ट प्रकार की कला प्रचलित है जिसे ऐपण या अल्पना कहा जाता है । इस कला का प्रारंभ चंद काल में हुआ था । कुमाऊँ में ऐपण शुभ प्रतीक माना जाता है । इसे शुभ अवसरों , त्योहारों , उत्सवों , विवाह , यज्ञोपवीत तथा नामकरण जैसे शुभ अवसरों पर मकानों , मंदिरों , मकानों की देहलीजों पर चित्रित किया जाता है । अल्पना बनाने में गेरुवी मिट्टी तथा चावल के आटे का घोल ( विस्वार ) का प्रयोग किया जाता है । सर्वप्रथम गेरुवी मिट्टी से जिस स्थान पर अल्पना बनाना हो को लीप दिया जाता है जब वह सूख जाता है उस पर विस्वार ( चावल के आटे का घोल ) से महीन रेखाओं द्वारा अनेक आकृतियाँ बनायी जाती हैं । ये आकृतियाँ विभिन्न देवी देवताओं से सम्बन्धित होती हैं । इन्हें पीठ कहा जाता है ; जैसे दुर्गा पीठ , लक्ष्मी पीठ , काली पीठ , शिव पीठ , विष्णु पीठ , गणेश पीठ आदि । इन देव पीठो पीठ तथा सरस्वती के अतिरिक्त विवाह , नामकरण , यज्ञोपवीत आदि संस्कारों के अवसर पर विभिन्न चौकियों को चित्रित किया जाता है । ऐपण अधिकांशतया स्त्रियों द्वारा ही बनाये । जाते हैं ।
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