कुष्मांडा माता की कथा || चौथा नवरात्रि स्पेशल || नवरात्रि का चौथा दिन


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कुष्मांडा माता की कथा इस प्रकार है:

प्राचीन काल में, जब ब्रह्मांड में कोई सृष्टि नहीं थी और सब ओर अंधकार व्याप्त था, तब देवी कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। उन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा भी माना जाता है। उनकी मुस्कान के कारण एक हल्की गर्मी उत्पन्न हुई, और इसी उष्मा से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। इस कारण उनका नाम 'कुष्मांडा' पड़ा, जिसका अर्थ है – ‘कू’ (छोटा), ‘उष्मा’ (गर्मी), और ‘अंड’ (ब्रह्मांड)।

कहा जाता है कि देवी कुष्मांडा सृष्टि की प्रारंभिक अवस्था में निवास करती थीं, जहां न प्रकाश था, न जीवन। उन्होंने चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाया और सृष्टि का आधार तैयार किया। इससे चारों ओर जीवन का संचार हुआ। देवी कुष्मांडा ने ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव को भी उत्पन्न किया ताकि वे सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य कर सकें।

देवी कुष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं, जिनके हाथों में विभिन्न आयुध और वस्त्र होते हैं। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत का कलश, चक्र, गदा, और एक हाथ में जपमाला होता है। उन्हें सूर्य के मध्य में निवास करते हुए माना जाता है, जहां से वे पूरे ब्रह्मांड को अपनी ऊर्जा प्रदान करती हैं।

कहा जाता है कि देवी कुष्मांडा की पूजा करने से मनुष्य को निरोगता, समृद्धि और शक्तियों की प्राप्ति होती है। साथ ही, देवी की कृपा से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और साधक को सुख, शांति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

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