मां ब्रह्मचारिणी की कथा || दुसरे नवरात्र की पौराणिक कथा || ब्रह्मचारिणी माता कोन है


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ब्रह्मचारिणी माता माँ दुर्गा के नौ रूपों में से दूसरे स्वरूप को कहा जाता है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। "ब्रह्म" का अर्थ है तपस्या या ज्ञान, और "चारिणी" का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य है वह देवी जो कठोर तपस्या और संयम का पालन करती हैं।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांत और दिव्य होता है। वे सफेद वस्त्र धारण किए रहती हैं और उनके हाथों में एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है। उनकी पूजा से भक्तों को तप, संयम, साधना और ज्ञान की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि माता ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को उसकी साधनाओं में सफलता और संयम प्राप्त होता है, जिससे वह हर कठिनाई का सामना कर पाता है।

माँ ब्रह्मचारिणी की कथा के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनके इस कठिन तप से ही उनका नाम "ब्रह्मचारिणी" पड़ा।

ब्रह्मचारिणी किसका प्रतीक है?

मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली मां ब्रह्मचारिणी को शत शत नमन है। मान्‍यता है कि नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में अच्छे गुण आते हैं।

ब्रह्मचारिणी माता का दूसरा नाम क्या था?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने नारद मुनि के कहने पर शिव जी की कठोर तपस्या की थी और इसके प्रभाव से उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है।

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