उत्तराखंड शास्त्रीय लोक गायिका कमला देवी || uttarakhand singers 👩‍🎤

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उत्तराखंड की रहने वाली कमला देवी जी एक शास्त्रीय लोक गायिका हैं जो अपनी आवाज़ पर अत्यधिक नियंत्रण रखती हैं, जो एक सराहनीय उपलब्धि है! जब वह #कोकस्टूडियोभारत सीज़न 2 में अपने संगीत वीडियो में प्रकट होंगी तो उनकी गायन क्षमता का अनुभव करें ! कुछ लोग आजकल कमला देवी जी की तस्वीर ज़्यादातर लोगों की स्टोरी में देख़ रहे होंगे @cokestudiobharat वाली ! मौलिकता को फॉलोअर्स की जरूरत नहीं होती है। फॉलोअर्स तो बरसाती पानी का रेला है। कमला देवी को उनकी मौलिकता दूर तक ले जायेगी । हम कह सकेंगे कि देखो हमारा फोक वहां कोक स्टूडियो में आया ! आने वाली पीढ़ियां आपको सम्मान के साथ याद करेगी। 

इस वीडियो में कमला देवी जी जो गा रहीं है शायद पहाड़ के सभी लोगो ने सुना व देखा होगा !

जागर ( घटियॉल) मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर “बाइसी” तथा “चौरास” दो प्रकार के होते हैँ. बाइसी बाईस दिनोँ तक जागर किया जाता है। कहीँ-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौधह दिन तक चलता है। पर कहिँ कहिँ चौरास को चार दिनोँ में ही समाप्त किया जाता है। जागर में “जगरीया” मुख्य पात्र होता है। जो रामायण, महाभारत आदी धार्मीक ग्रंथोँ की कहानीयोँ के साथ ही जीस देवता को जगाया जाना है उस देवता का चरित्र को स्थानीय भाषा में वर्णन करता है। जिस देवता की घटियाली (जागर) लगता है तब उन देवता की जीवन कहानी को गायन के रूप में सुनाया जाता हैं .. जगरीया हुड्का (हुडुक), कासे की थाली , ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है। जगरीया के साथ में दो तीन जने और रहते हैँ. जो जगरीया के साथ जागर गाते हैँ और कांसे की थाली को नगडे की तरह बजाते हैँ. जागर का दुसरा पात्र होता है “डंगरीया” (डग मगाने वाला) डंगरीया के शरीर में देवता चढता है। जगरीया के जगाने पर डंगरीया कांपता है और जगरीया के गीतोँ की ताल में नाचता है। डंगरीया के आगे चावल के दाने रखे जाते हैँ जिसे हाथ में लेकर डंगरीया और लोगोँ से पुछा गया प्रश्न का जवाब देता है। जागर का तीसरा पात्र होता है स्योँकार (सेवाकार) स्योँकार उसे कहा जाता है जो अपने घर अथवा मन्दिर में जागर कराता है और जगरीया, डगरीया लगायत अन्य लोगोँ के लिए भोजन पानी का पुरा व्यवस्था करता है। जागर कराने से स्योँकार को इच्छित फल प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।



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