नंदा देवी राज जात यात्रा क्यों होती है? || Nanda Raj-Jat Yatra story ||
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नंदा देवी राज जात यात्रा क्यों होती है?
Nanda devi Uttarakhand |
नंदा देवी राज जात यात्रा उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में होने वाली एक प्रमुख धार्मिक यात्रा है। यह यात्रा हर 12 साल में एक बार आयोजित होती है और इसे उत्तराखंड की "कुंभ यात्रा" के नाम से भी जाना जाता है। यह यात्रा देवी नंदा के सम्मान में की जाती है, जिन्हें उत्तराखंड की कुलदेवी माना जाता है। इस यात्रा का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है।
नंदा देवी का महत्व:
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हिंदू धर्म में नंदा देवी को शिव की पत्नी और पार्वती के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि नंदा देवी पर्वत उनके निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। उत्तराखंड के लोग नंदा देवी को अपनी बेटी मानते हैं और इस यात्रा के माध्यम से वे उसे विदा करने की प्रक्रिया करते हैं, जो उनकी धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है।
यात्रा की परंपरा और महत्व:
नंदा देवी राज जात यात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है। यह यात्रा करीब 280 किलोमीटर लंबी होती है और कई कठिन पहाड़ी रास्तों से गुजरती है। यह यात्रा 22 से 25 दिन तक चलती है और इसमें देवी की मूर्ति को विभिन्न गांवों से होते हुए मुख्य स्थल होमकुंड तक ले जाया जाता है।
यात्रा के दौरान भक्तजन देवी नंदा के साथ उनकी बहन सुनंदा की मूर्ति को भी अपने साथ रखते हैं। यात्रा के अंतिम चरण में होमकुंड में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, जो इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्षण होता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
नंदा देवी राज जात यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि उत्तराखंड के पारंपरिक संस्कृति, लोककला, और लोकगाथाओं का भी हिस्सा है। इस यात्रा में स्थानीय लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक वेशभूषा भी देखने को मिलती है, जो इस यात्रा को और भी अधिक जीवंत बनाती है।
नंदा देवी राज जात यात्रा उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह यात्रा न केवल देवी नंदा के प्रति आस्था को दर्शाती है, बल्कि उत्तराखंड के लोगों की सामूहिक एकता, समर्पण और धैर्य को भी प्रदर्शित करती है। इस यात्रा के माध्यम से उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परंपराएं पीढ़ियों से जीवित हैं और आगे भी जीवित रहेंगी।
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