पुरखों की जमीन को बचाने के प्रयास || उत्तराखंड मे पहाड़ो क्यो नही होता था पलायन ? || पहाड़ो की जमीन


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पुरखों की जमीन: उत्तराखंड की धरोहर

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियाँ, हरी-भरी घाटियाँ, ऊँचे पहाड़ और शांत बहती नदियाँ यहाँ की धरती को स्वर्ग जैसा बनाती हैं। लेकिन उत्तराखंड की असली खूबसूरती सिर्फ यहाँ के प्राकृतिक नजारों में नहीं, बल्कि यहाँ के लोगों के अपने पुरखों की जमीन से जुड़े अटूट रिश्ते में भी बसती है। "पुरखों की जमीन" यहाँ के निवासियों के लिए मात्र एक संपत्ति नहीं है, बल्कि यह एक विरासत, एक धरोहर, और पीढ़ियों से चले आ रहे इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है।

पुरखों की जमीन का महत्व

पुरखों की जमीन, जिसे यहाँ के लोग अपने पूर्वजों की अमूल्य धरोहर मानते हैं, सिर्फ भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि पुरखों के संघर्ष, मेहनत, और संस्कारों की गवाही है। यहाँ के पहाड़ी इलाकों में बसे गाँवों में अधिकांश परिवारों के पास उनके पुरखों की दी हुई जमीन है। यह जमीन पीढ़ियों से परंपराओं, रीति-रिवाजों, और सांस्कृतिक धरोहरों का प्रतीक है। 

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती-बाड़ी, पशुपालन और छोटे-मोटे व्यवसायों के जरिये अपनी जीविका चलाते आए हैं। पहाड़ी जमीनें उपजाऊ तो नहीं होतीं, लेकिन अपने परिवार के लिए अनाज, सब्जियाँ, और अन्य आवश्यक चीजें जुटाने का साधन बनती हैं। इस प्रकार, यह जमीन केवल एक संपत्ति नहीं, बल्कि जीविका का साधन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

पुरखों की जमीन से दूरियाँ और पलायन

हाल के वर्षों में उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन देखने को मिल रहा है। बेहतर शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश में लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे कई गाँव खाली हो गए हैं। इन खंडहर बने घरों और बंजर होती खेतों की तस्वीरें मन को व्यथित कर देती हैं। 

पलायन के इस बढ़ते दौर में पुरखों की जमीन अक्सर उपेक्षित हो जाती है। घर खाली होने के कारण जमीन पर खेती नहीं होती, और धीरे-धीरे वह बंजर होने लगती है। कई बार यह जमीन जंगल में तब्दील हो जाती है या फिर बाहरी लोग उस पर कब्जा कर लेते हैं।

 पुरखों की जमीन को बचाने के प्रयास

इस समस्या का समाधान ढूँढ़ने के लिए कई स्थानीय संगठन और सरकारें पहल कर रही हैं। युवाओं को अपने गाँवों में वापस लाने और खेती को बढ़ावा देने के लिए नई-नई योजनाएँ बनाई जा रही हैं। जैविक खेती, पर्यटन, बागवानी और हस्तशिल्प जैसे रोजगार के साधनों के माध्यम से स्थानीय लोगों को आर्थिक सहायता दी जा रही है ताकि वे अपने पुरखों की जमीन पर वापस लौट सकें।

घुमक्कड़ी पर्यटन(हॉमस्टे) की अवधारणा भी लोगों को अपनी जमीन पर वापस लौटने का एक अच्छा साधन साबित हो रही है। ग्रामीण पर्यटन के माध्यम से लोग अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहरों को पुनर्जीवित कर रहे हैं, साथ ही यह आजीविका का साधन भी बन रहा है।

हमारी जिम्मेदारी

पुरखों की जमीन को सँभालना सिर्फ सरकार का काम नहीं है, यह हम सब की जिम्मेदारी है। अपने पुरखों की इस धरोहर को सँभालने के लिए हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। यह जमीन सिर्फ हमारी संपत्ति नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास, और हमारे अस्तित्व का प्रतीक है। 

आइये, मिलकर प्रयास करें कि यह धरोहर भविष्य में भी इसी तरह संजोयी रहे और उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को आगे की पीढ़ियों तक पहुँचाए।

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