हरतालिका तीज || हरतालिका व्रत कथा || hartali teej

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मान्यता है जो सुहागिनें और कुंवारी लड़कियां हरतालिका तीज निर्जला व्रत रखकर रात्रि जागरण करती हैं और विधिवत मां पार्वती और भोलेनाथ की पूजा करती है उन्हें सुखद वैवाहिक जीवन और सुयोग्य वर प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है. नियम के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत एक बार शुरु करने के बाद इसे बीच में नहीं छोड़ा जाता है,

और आज ही के दिन तिवारी के ब्राह्मणों का रक्षाबंधन भी मनाया जाता है, 
Hartali  teej

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की थी। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी।माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता बहुत दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में बताया तो वह काफी दुखी हो गई।उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं।
लेकिन उनके पिता चाहते की पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी।जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।


देवी मंत्र- ऊँ गौर्ये नम: और गौरी मे प्रीयतां नित्यं अघनाशाय मंगला। सौभाग्यायास्तु ललिता भवानी सर्वसिद्धये।।
शिव मंत्र- ऊँ नम: शिवाय
गणेश जी के मंत्र- श्री गणेशाय नम:

 

हरतालिका तीज पर सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती और जीवन में सुख-सुविधा और संपन्नता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। हरतालिका तीज पर प्रदोष काल में पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है। ऐसे में आज शाम को  06 बजकर 33 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 51 मिनट तक प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए

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