कावड़ यात्रा कब से होती है || Haridwar kawad yatra || kanwar yatra kab aur kyo Hoti hai
via https://youtu.be/YGdBjnW8-7M
धार्मिक संदर्भ में कहें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। कांवड यात्रा का आयोजन अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे।
दरअसल धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. ये जल एक पवित्र स्थान से अपने कंधे पर ले जाकर भगवान शिव को सावन की महीने में अर्पित किया जाता है. इस यात्रा के दौरान भक्त बल भोले के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं.
हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए हैं। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु - पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है.
1. परशुराम थे पहले कावड़िया- कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ' पुरा महादेव ' का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था । परशुराम , इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे । आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ' पुरा महादेव ' का जलाभिषेक करते हैं । गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है ।
2.श्रवण कुमार थे पहले कावड़िया- वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी । माता - पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता - पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार • में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की । माता - पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता - पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया . वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए । इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है । ALSO READ : श्रवण मास में इस बार 5 सोमवार के 5 महादेव कौन से हैं
3. भगवान राम ने की थी कावड़ यात्रा की शुरुआत कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे । उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर , बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था ।
4. रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत पुराणों के अनुसार कावड़ यात्रा की परंपरा , समुद्र मंथन से जुड़ी है । समुद्र मंथन से निकले वि ष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए । परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया । ALSO READ : कैसे पड़ा भोलेनाथ का नाम ' नीलकंठ ' पढ़ें संपूर्ण कथा शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया । तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने ' पुरा महादेव ' स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया । इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ ।
5. देवताओं ने सर्वप्रथम शिव का किया था जलाभिषेक कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था । सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे । सावन मास में कावड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ ।
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