Chambu devta || history of chamu devta || chambu devta Uttarahand || चमू देवता


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लोहाघाट, जेएनएन : नेपाल सीमा से लगे गुमदेश क्षेत्र का ऐतिहासिक चमू देवता मंदिर पांडव कालीन इतिहास की जीती जागती मिसाल है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान किया था। नवरात्र के दौरान मंदिर में पूजा अर्चना करने वालों का तांता लगा रहता है। इसी मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र में सीमावर्ती गांवों के प्रसिद्ध चैतोला मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि श्रद्धा भाव से मांगी गई हर मुराद चमू देवता पूरी करते हैं।

देव भूमि में यत्र-तत्र स्थित मन्दिर व देवालय अपनी विशिष्ट मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। गुमदेश क्षेत्र के चमदेवल में स्थित चमू देवता मन्दिर भी प्रगाढ़ आस्था का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण अज्ञातवास के दौरान यहां पहुंचे पांडवों ने किया था। मंदिर के अन्दर शिवलिंग व दीवारों पर विराजमान पांडव कालीन मूर्तियां इसका प्रमाण हैं। कहा जाता है कि तत्कालीन समय में शक्तिशाली दैत्य बकासुर ने क्षेत्र में आतंक मचाया हुआ था, जिससे परेशान एक  वृद्ध महिला ने दैत्य के आतंक से कुल नाश की आशंका को देखते हुए चमू देवता से दैत्य से रक्षा करने की गुहार लगाई थी। भक्त की कस्ण पुकार सुन कर चमू देवता ने बकासुर का वध कर क्षेत्रवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। तब से यहां प्रतिवर्ष लोग उत्सव के स्प में चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन करते आ रहे हैं, जिसे चैतोला मेले के नाम से जाना जाता है। 

चमू देवता की जमान रथ को ले जाया गया मड गांव

गुमदेश क्षेत्र के ऐतिहासिक मेले के पहले दिन चमू देवता की जमान रथ को मड गांव ले जाया गया। परंपरा के अनुसार शिलिंग, मड, चौपता, जाख, सिरकोट, जिण्ड़ी, नेवलटुकरा व बस्कुनी से पहुंचे जत्थों ने चमू देवता के प्राचीन मंदिर की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। परंपरा के अनुसार मड़ गांववासियों द्वारा रथ को जमानीगढ़ से मड गांव तक ले जाया जाता है। देर रात तक विभिन्न गांवों में चमू देवता की विशेष पूजा अर्चना के बाद रात भर महिलाओं द्वारा झोड़े तथा पुस्षों द्वारा ढुस्कों का गायन किया गया

लोहाघाट, नेपाल सीमा से लगे गुमदेश क्षेत्र का ऐतिहासिक चमू देवता मंदिर पांडव कालीन इतिहास की जीती जागती मिसाल है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान किया था। नवरात्र के दौरान मंदिर में पूजा अर्चना करने वालों का तांता लगा रहता है। इसी मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र में सीमावर्ती गांवों के प्रसिद्ध चैतोला मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि श्रद्धा भाव से मांगी गई हर मुराद चमू देवता पूरी करते हैं।
देव भूमि में यत्र-तत्र स्थित मन्दिर व देवालय अपनी विशिष्ट मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। गुमदेश क्षेत्र के चमदेवल में स्थित चमू देवता मन्दिर भी प्रगाढ़ आस्था का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण अज्ञातवास के दौरान यहां पहुंचे पांडवों ने किया था। कहा जाता है कि तत्कालीन समय में शक्तिशाली दैत्य बकासुर ने क्षेत्र में आतंक मचाया हुआ था, जिससे परेशान एक  वृद्ध महिला ने दैत्य के आतंक से कुल नाश की आशंका को देखते हुए चमू देवता से दैत्य से रक्षा करने की गुहार लगाई थी। भक्त की कस्ण पुकार सुन कर चमू देवता ने बकासुर का वध कर क्षेत्रवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। तब से यहां प्रतिवर्ष लोग उत्सव के स्प में चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन करते आ रहे हैं, जिसे चैतोला मेले के नाम से जाना जाता है। 

चमू देवता की जमान रथ को ले जाया गया मड गांव

गुमदेश क्षेत्र के ऐतिहासिक मेले के पहले दिन चमू देवता की जमान रथ को मड गांव ले जाया गया। परंपरा के अनुसार शिलिंग, मड, चौपता, जाख, सिरकोट, जिण्ड़ी, नेवलटुकरा व बस्कुनी से पहुंचे जत्थों ने चमू देवता के प्राचीन मंदिर की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। परंपरा के अनुसार मड़ गांववासियों द्वारा रथ को जमानीगढ़ से मड गांव तक ले जाया जाता है। देर रात तक विभिन्न गांवों में चमू देवता की विशेष पूजा अर्चना के बाद रात भर महिलाओं द्वारा झोड़े तथा पुस्षों द्वारा ढुस्कों का गायन किया गया
लोहाघाट, जेएनएन : नेपाल सीमा से लगे गुमदेश क्षेत्र का ऐतिहासिक चमू देवता मंदिर पांडव कालीन इतिहास की जीती जागती मिसाल है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान किया था। नवरात्र के दौरान मंदिर में पूजा अर्चना करने वालों का तांता लगा रहता है। इसी मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र में सीमावर्ती गांवों के प्रसिद्ध चैतोला मेले का आयोजन होता है। मान्यता है कि श्रद्धा भाव से मांगी गई हर मुराद चमू देवता पूरी करते हैं।

देव भूमि में यत्र-तत्र स्थित मन्दिर व देवालय अपनी विशिष्ट मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। गुमदेश क्षेत्र के चमदेवल में स्थित चमू देवता मन्दिर भी प्रगाढ़ आस्था का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण अज्ञातवास के दौरान यहां पहुंचे पांडवों ने किया था। मंदिर के अन्दर शिवलिंग व दीवारों पर विराजमान पांडव कालीन मूर्तियां इसका प्रमाण हैं। कहा जाता है कि तत्कालीन समय में शक्तिशाली दैत्य बकासुर ने क्षेत्र में आतंक मचाया हुआ था, जिससे परेशान एक  वृद्ध महिला ने दैत्य के आतंक से कुल नाश की आशंका को देखते हुए चमू देवता से दैत्य से रक्षा करने की गुहार लगाई थी। भक्त की कस्ण पुकार सुन कर चमू देवता ने बकासुर का वध कर क्षेत्रवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। तब से यहां प्रतिवर्ष लोग उत्सव के स्प में चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन करते आ रहे हैं, जिसे चैतोला मेले के नाम से जाना जाता है। 

चमू देवता की जमान रथ को ले जाया गया मड गांव

गुमदेश क्षेत्र के ऐतिहासिक मेले के पहले दिन चमू देवता की जमान रथ को मड गांव ले जाया गया। परंपरा के अनुसार शिलिंग, मड, चौपता, जाख, सिरकोट, जिण्ड़ी, नेवलटुकरा व बस्कुनी से पहुंचे जत्थों ने चमू देवता के प्राचीन मंदिर की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। परंपरा के अनुसार मड़ गांववासियों द्वारा रथ को जमानीगढ़ से मड गांव तक ले जाया जाता है। देर रात तक विभिन्न गांवों में चमू देवता की विशेष पूजा अर्चना के बाद रात भर महिलाओं द्वारा झोड़े तथा पुस्षों द्वारा ढुस्कों का गायन किया गया

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