Famous furit s in Uttarakhand India || Breweries aristata || उत्तराखंड के फल
किलमोड़ा (वैज्ञानिक नाम- ब्रेवरीज एरिस्टाटा)
प्रकृति ने उत्तराखंड को कुछ ऐसे तोहफे दिए हैं, जिनके बारे में अगर सही ढंग जान लिया तो आपके शरीर से बीमारियां हमेशा के लिए दूर भाग सकती हैं। खास तौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में प्रकृति के गोद में ही आपको कई बीमारियों का इलाज मिल जाएगा। आज हम आपको कंटीली झाड़ियों में उगने वाले एक फल के बारे में बता रहे हैं। ये छोटा सा फल बड़े काम का है। आम तौर पर इसे किलमोड़ा नाम से ही जाना जाता है। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फल हर एक चीज बेहद काम की है। इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी ट्यूमर, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। डायबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
वनस्पति विज्ञान में ब्रेवरीज एरिस्टाटा को पहाड़ में किलमोड़ा के नाम से जाना जाता है। इसकी करीब 450 प्रजातियां दुनियाभर में पाई जाती हैं। भारत, नेपाल, भूटान और दक्षिण-पश्चिम चीन सहित अमेरिका में भी इसकी प्रजातियां हैं।
किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद देते हैं। दाद, खाज, फोड़े, फुंसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में ही है। डॉक्टर्स कहते हैं कि अगर आप दिनभर में करीब 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किलमोड़ा के फल और पत्तियां एंटी ऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एंटी ऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। किलमोडा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों और पर्यवरण प्रेमियों ने इसके खत्म होते अस्तित्व को लेकर चिंता जताई है। इसके साथ किलमोड़े के तेल से जो दवाएं तैयार हो रही हैं, उनका इस्तेमाल शुगर, बीपी, वजन कम करने, अवसाद, दिल की बीमारियों की रोक-थाम करने में किया जा रहा है। इसके पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं और एक खास मौसम में इस पर बैंगनी फल आते हैं। पहाड़ के क्षेत्रों में बच्चे इसे बड़े चाव से खाते हैं।
आम तौर पर ये पेड़ उपेक्षा का ही शिकार रहा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पेड़ृ से दुनियाभर में जीवन रक्षक दवाएं तैयार हो रही हैं। किलमोड़ा की झाड़ियों से तैयार हुए तेल का इस्तेमाल कई तरह की दवाएं बनाने में किया जाने लगा है। कुछ लोगों ने किलमोड़े को कमाई का जरिया बना लिया है।
लखनऊ में दवा बनाने वाली एक कंपनी यह तेल खरीद रही है। एक लीटर तेल से छह सौ रुपये मिल जाते हैं। दवाइयों के लिए सबसे अधिक किलमोड़ा का कच्चा तेल हिमाचल प्रदेश से ही भेजा जाता है।
मार्च से अप्रैल के माह में किलमोड़ा में पीले रंग के फूल खिलते हैं तथा मध्य मई से जून अंत तक इसमें नीले रंग के छोटे-छोटे फल लगते हैं। जो स्वाद में लाजवाब और खट्टे मीठे होते हैं।
सामान्य रूप में किलमोड़ा के नीले रंग के फल को खाया जाता है। इसके साथ ही इसकी जड़ों का प्रयोग भी औषधि के रूप में किया जाता है। उत्तराखण्ड में अनियंत्रित रूप में किलमोड़ा की जड़ों का दोहन गैर कानूनी हैं।
दोस्तों अब हम जानते हैं इसके फायदे
मधुमेह अथवा शुगर से ग्रसित लोगों के लिए किलमोड़ा एक नायाब औषधि है। इसके लिए किलमोड़ा की ताजा जड़ों को उबाल कर इसका अर्क तैयार किया जाता है। यह अर्क गाढ़ा पीले रंग का होता है, शुगर से ग्रसित व्यक्ति को यह अर्क दैनिक रूप से 15 से 20 ml दिन में 3 बार तक लिया जा सकता है। इसके नियमित उपयोग से रक्त में शर्करा के स्तर को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
ध्यान रहे अधिक मात्रा में किलमोड़ा के जड़ का अर्क लेना शरीर में रक्तचाप तथा गुर्दे की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर चिकित्ससककता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। इस लिए किलमोड़ा हुा के अर्क का प्रयोग प्रारम्भ करने से पूर्व चिकित्सक से सलाह लेना आवश्यक है।
एक शोध के अनुसार किलमोड़ा की जड़ों का प्रयोग कैंसर रोधी गतिविधि के लिए औषधि के रूप में किया जा सकता है।
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