गोलू देवता || history of golu devta || उत्तराखंड के देवी देवता पुजा || गोलू देवता की कथा
गोलू देवता
ग्वाला को गोरिल्ला या गोला या गोलू भी कहा जाता है। ग्वाला के सम्मान में कई मंदिरों पर बैनर और झंडे लगाए गए हैं। चंपावत, चितई और घोड़ाखाल में ग्वाला मंदिर हैं, हालांकि चितई का मंदिर उनमें से सबसे प्रसिद्ध है। ग्वाला की कहानी एक स्थानीय राजा की बात करती है जिसने शिकार करते समय अपने नौकरों को पानी की तलाश में भेजा। नौकरों ने प्रार्थना कर रही एक महिला को परेशान किया। महिला ने गुस्से में, राजा को ताना मारा कि वह दो लड़ते हुए बैलों को अलग नहीं कर सकता और खुद ऐसा करने के लिए आगे बढ़ा। राजा इस काम से बहुत प्रभावित हुआ और उसने महिला से शादी कर ली। जब इस रानी को एक बेटा मिला, तो दूसरी रानियों, जो उससे ईर्ष्या कर रही थीं, ने अपनी जगह पर एक कदु और एक पिंजरे में बच्चे को रखा और पिंजरे को नदी में डाल दिया। बच्चे को एक मछुआरे द्वारा लाया गया था। जब लड़का बड़ा हो गया तो वह लकड़ी के घोड़े को नदी में ले गया और रानियों द्वारा सवाल किए जाने पर उसने उत्तर दिया कि यदि महिलाएं कदु को जन्म दे सकती हैं तो लकड़ी के घोड़े पानी पी सकते हैं। जब राजा ने इस बारे में सुना, तो उसने दोषी रानियों को दंडित किया और उस लड़के को ताज पहनाया, जिसे गवली देवता के नाम से जाना जाता
इसको गोरिल, गौरिया, ग्वेल, ग्वाल्ल या गोल भी कहते हैं। यह कुमाऊँ का सबसे प्रसिद्ध व मान्य ग्राम-देवता है। वैसे इसके मंदिर ठौर-ठौर में है, पर ज्यादा प्रसिद्ध ये हैं। बौरारौ पट्टी में चौड़, गुरुड़, भनारी गाँव में, उच्चाकोट के बसोट गाँव में, मल्ली डोटी में तड़खेत में, पट्टी नया के मानिल में, काली-कुमाऊँ के गोल चौड़ में, पट्टी महर के कुमौड़ गाँव में, कत्यूर में गागर गोल में, थान गाँव में, हैड़ियागाँव, छखाता में, चौथान रानीबाग में, चित्तई अल्मोड़ा के पास।
ग्वाल देवता गी उत्पत्ति इस प्रकार से बतायी जाती है -
चम्पावद कत्यूरी राजा झालराव काला नदी के किनारे शिकार खेलने को गये। शिकार में कुछ न पाया। राजा थककर और हताश होकर दूबाचौड़ गाँव में आये। जहाँ दो भैंस एक खेत में लड़ रहे थे। राजा ने उनको छुड़ाना चाहा पर असफल रहे। राजा प्यासा था। एक नौकर को पानी के लिए भेजा, पर पानी न मिला, दूसरा नौकर पानी की तलाश में गया। उसने पानी की आवाज सुनी, तो अपने को एक साधु के आश्रम के बगीचे में पाया। वहाँ आश्रम में जाकर देखा कि एक सुन्दर स्री तपस्या में मग्न है। नौकर ने जोर से पुकारा, और स्री की समाधि भंग कर दी। औरत ने पूछा कि वह कौन है? स्री ने धीरे-धीरे आँखे खोली और नौकर से कहा कि वह अपनी परछाई उसके ऊपर न डाले, जिससे उसकी तपस्या भंग हो जाय। नौकर ने स्री को अपना परिचय दिया, और अपने आने का कारण बताया। तथा झरने से पानी भरने लगा। तो घड़े का छींट स्री के ऊपर पड़ा तब उस तपस्विनी ने उठकर कहा कि जो राजा लड़ते भैसों को छुड़ा न सका, उसके नौकर जो न करे, सो कम। नौकर को इस कथन पर आश्चर्य हुआ। उसने स्री से पूछा कि वह कौन है?
तपस्विनी ने कहा - "उसका नाम काली है, और व राजा की लड़की है। वह तपस्या कर रही है। नौकर ने आकर उसकी तपस्या भंग कर दी।' राजा उस पर मोहित हो गये, और उससे विवाह करना चाहा। राजा उसके चाचा के पास गये। देखा - वह एक कोढ़ी था। पर राजा काली पर मोहित थे। उन्होंने उस कोढ़ी को अपने सेवा-सुश्रुषा से संतुष्ट कर लिया, और वह विवाह को राजी हो गया। अपने चाचा की आज्ञास से उस स्री ने राजा से विवाह कर लिया। काली रानी गर्भवती हुई। राजा ने रानी से कहा था कि जब प्रसव पीड़ा हो तो वह घंटी बजावे। राजा आ जाएगा। रानियों ने छल से घंटी बजाई। राजा आये, पर पुत्र पैदा न हुआ। राजा फिर दौरे में चले गए। रानी के एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। अन्य रानियों ने ईर्ष्या के कारण पुत्र को छिपा लिया। काली रानी की आँखों में पट्टी बाँधकर उसके आगे एक कद्दुू रख दिया। रानियों ने लड़के को नमक से भरे एक पिंजरे में बन्द कर दिया। पर आश्चर्य है कि नमक चीनी हो गया। और बच्चे ने उसे खाया। इधर रानियों ने बच्चे को जिन्दा देखकर पिंजरे को नदी में फेंक दिया। वहाँ वह मछुवे के जाल में फंसा। मछुवे के सन्तान न थी। ईश्वर की देन समझकर वह सुन्दर राजकुमार को अपने घर ले गया। लड़का बड़ा हुआ और एक काठ के घोड़े पर चढ़कर उस घाट में पानी पिलाने को ले गया, जहाँ वे दुष्ट रानियाँ पानी भरने को जाती थीं। उनके बर्तन तोड़कर कहने लगा कि वह अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाना चाहता है। वे हँसी, और कहने लगी की क्या काठ का घोड़ा भी पानी पीता है? उसने कहा कि जब स्री को कद्दुू पैदा हो सकता है तो काठ का घोड़ा भी पानी पीता है। यह कहानी राजा के कानों में पहुँची। राजा ने लड़के को बुलाया। लड़के ने रानियों के अत्याचार की कहानी सुनाई। राजा ने सुनकर रानियों को तेल की कढ़ाई में पकाये जाने का हुक्म दिया। बाद में वह राजकुमार राजा बना। वह अपने जीवन-काल में ही पिछली बातों को जानने के कारण पूजा जाता था। मृत्यु के बाद तमाम कुमाऊँ में माना जाने लगा। वह लोहे कापिंजरा गौरी-गंगा में फेंका गया था।
उत्तराखंड जागरण पुजा |
गोलु देवता मंदिर
चितई गोलू देवता मंदिर ( अल्मोड़ा उत्तराखंड )
चंपावत, गोलू देवता मंदिर (चंपावत उत्तराखंड)
घोड़ाखाल, गोलु देवता मंदिर ( नैनीताल उत्तराखंड )
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