उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति || Uttarakhand civilization and culturebin Hindi ||

तिमुल

उत्तराखंड की संस्कृति और उत्तराखंड की सभ्यता।

उत्तराखंड की संस्कृति के मौसम और जलवायु के अनुरूप है या उत्तराखंड एक पहाड़ी इलाका है और इसलिए यहां ठंड बहुत होती है। इसलिए ठंडी जलवायु के आस-पास ही उत्तराखंड की संस्कृति के सभी पहलुओं जैसे रहन-सहन, वेशभूषा, लोककला इत्यादि घूमते हैं।
1 रहन-सहन  
2 त्योहार,    
3खान-पान,  
4 वेशभूषा लोक कलाएं।

5 लोक नृत्य, 
6 भाषाएं इत्यादि उत्तराखंड के सभ्यता संस्कृति
1 उत्तराखंड के रहन-सहन
रहन-सहन  के मकान पक्के होते हैं। दीवारों पत्रों की होती है। पुराने घरों के ऊपर से पत्थर बिछाए जाते हैं। वर्तमान में लोकतंत्र का उपयोग करने लगते हैं। अधिकतर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात खाने के प्रचलन है। लगभग हर महीने कोई ना कोई त्योहार मनाया जातास्थानीय स्तर पर गाए जाने वाली देहात राजभर आदि दालों का प्रयोग होता है। प्राचीन समय में मधु आवाज मंगल स्थानी मोटा अनाज होता था। अब इनका उत्पादन बहुत कम हो गया। अब लोग बाजार से गेहूं चावल खरीदना है। फिर से के साथ पशुपालन लगभग सभी घरों में होता है। घर में उत्पत्ति अनाज कुछ ही महीनों के लिए पर्याप्त होता है। सरसों के समीप लोग दूध।पहाड़ के लोग भाग कामकाजी होते हैं। पहाड़ों को काटकर सीढ़ीदार खेत बनाने का काम करते हैं। पहाड़ में अधिकतर श्रमिक भी पढ़े लिखे हैं। चाहे कम ही पड़े इस कारण राज्य को साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक
2 उत्तराखंड के पर्व
उत्तराखंड में पूरे वर्ष उत्सव मनाया जाना है। भारत के प्रमुख उत्सव जैसे दीपावली, होली, दशहरा इत्यादि के अतिरिक्त यहां के कुछ स्थानीय त्योहार है। मेले देवीधुरा मेला पूर्णागिरि, मेला नंदा देवी मेला, उत्तरी मेला, गोटमार, मेला, बैसाखी, मेला, माघ, मेला विष्णु मेला गंगा, दशहरा नंदा देवी राजजात, ऐतिहासिक सोमनाथ हरेला उतरने क घुघुतिया, त्योहार, घी, संक्रांति कुमाऊं व गढ़वाल।
3 उत्तराखंड का खान-पान
उत्तराखंड के लोगों के खान-पान और अर्थव्यवस्था कुमार अग्रवाल के खानपान से पारंपरिक उत्तराखंडी खानपान बहुत पौष्टिक और बनाने में सरल होता है। आलू टमाटर की झोली के सूची का पीलू मकई की रोटी पिन आलू की सब्जी बेतवा का पराठा बाल मिठाई सिंगोड़ी कीस आफ गोद की दाल।
4 उत्तराखंड की वेशभूषा

आइए जानते हैं उत्तराखंड की वेशभूषा पहले से लोग आंगली घागरा पुरुष चूड़ीदार पैजामा पहनते थे। लेकिन आप यह प्रचलन बहुत कम होती है। इसलिए लोग यहां साड़ी ब्लाउज पेटीकोट आधी पहनते हैं पुरुष पेंट।जींस शर्ट पहनने लगेविवाहित औरत की पहचान गले में चारों पहनने से होती वह इत्यादि शुभ अवसरों का पिछवाड़ा पहनने का आज भी यहां पर चला आम माना जाता है,

5 उत्तराखंड के लोक नृत्य 
 उत्तराखंड के लोक नृत्य के बारे में भारतीय संस्कृति मैं यहां का स्थान सबसे उच्च रहा है जहां काजल जीवन बहुत ही शुद्ध और स्वच्छ रहता है। यहां का वातावरण शांत स्वभाव का है। यहां की जनवादी अनेक अवसरों पर वैद्य प्रकार के लोक नृत्य का आनंद उठाते हैं। विशेष लोक नृत्य धार्मिकयहां के लोग देवी-देवताओं को बहुत मानते हैं। उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक नित्य करवाते हैं जैसे कि उसे जाकर भी कहा जाता है। कंपन की चरम सीमा पर वह उठ कर बैठ कर नित्य करते हैं। इसे देवता का आना भी कहा जाता है। प्रस्ताव कहलाता है। ढोल दमोह बसते स्वर में देवताओं का नित्य किया जाता है। धार्मिक नीति की चार अवस्थाएं होती
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उत्तराखंड की भाषा उत्तराखंड में अन्य प्रकार की भाषाएं बोली जाती है। नगरी क्षेत्र में हिंदी भाषा बोली जाती है। कुमाऊं मंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में गढ़वाली बोली जाती है। कुमाऊनी तथा गढ़वाली भाषा को लिखने के लिए देवनागरी लिपि को प्रयुक्त किया जाता है। गढ़वाल के जौनसार बावर क्षेत्र में भाषा बोली जाती है। उसे जौनसारी बोली भाषा कहा जाता हैं,
लेखक
पंकज तिवारी

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