उत्तराखंड का प्रसिद्ध त्यौहार हरेला || harela festival uttarakhand in Hindi || हरेले का त्यौहार ||
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उत्तराखंड का लोकार्पव हरेला
हरेला शब्द का तात्पर्य हरियाली से यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है। पहला चैत मास, दूसरा स्वर्ण भाग तीसरा व आखिरी पर्व हरेला आश्विन मास में मनाया जाता
क्या है?? हरेली का मतलब?
हरेला शब्द की उत्पत्ति, हरियाली जीवन और खुशियों का प्रतीत होती है। उत्तराखंड के लोग के लिए हरेला बहुत ही खास त्यौहार होता है हरेला का त्योहार से 9 दिन पहले लोग अपने घर के मंदिर में या फिर गांव के मंदिर में सात प्रकार के अनाज बोया जाता है,
इससे लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। पहले टोकरी में एक परात मिट्टी की बिछाई जाती है। फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। इसके बाद फिर मिट्टी डाली जाती है। फिर से बीज डाले जाते हैं।
9 दिन तक उसमें जल डालते हैं। बीज अंकुरित हो जाने अब बढ़ने लगते हैं। हर दिन हरेले में पानी डाला जाता है 9 इसकी गोडांइ व 10 वें दीन घर के बड़े बुजुर्ग या पंडित करते हैं। पूजा, नवेद ,आरती, आदि का विधान भी होता है,कई तरह के पकवान बनते हैं।
उत्तराखंड में हरेला
उत्तराखंड में मनाया जाने वाला लोक पर्व त्योहार हरेला हर साल कार्तिक संक्रांति को मनाया जाता है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार यह त्योहार हर वर्ष 16 जुलाई को होता है। लेकिन कभी-कभी इसमें 1 दिन का अंतर हो जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य मिथुन राशि के कर्क राशि में प्रवेश करता है, उसे करता संक्रांति कहते हैं ,किशी वर्ष की तीर्थ इस विधि के कारण ही यह पर्व 1 दिन आगे पीछे हो जाती है, देव भूमि उत्तराखंड कि धरती रित्व के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं। यहां पर हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं। वही पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए इन्हें खास पर्व में शामिल हरेला उत्तराखंड में एक लोक पर्व हरेला अधिक महत्व है क्योंकि सावन मास शंकर भगवान जी का विशेष
पूजा अर्चना भी की जाती है सावन मास में शंकर जी को हरेला चढ़ाते समय बड़े बुजुर्गों द्वारा आशीर्वाद के कुछ इस प्रकार की दी जाती,
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