बागेश्वर || Bageshwar uttarakhand India || bagnath tempale Bageshwar uttarakhand
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जिले के बारे में
बागेश्वर कुमाँऊ के सबसे पुराने नगरो में से एक है। यह काशी के समान ही पवित्र तीर्थ माना जाता है।
उत्तराखंड अपनी नायाब खूबसूरती के लिए जाना जाता है। यहां आपको सुंदर-सुंदर मंदिर से लेकर कई बेहतरीन जगहें देखने को मिलेगी।उत्तराखंड की खूबसूरती को शब्दों में बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। ऐसे ही उत्तराखंड का एक शहर जो बागेश्वर के रूप में जाना जाता है। बागेश्वर शहर भी अपनी खूबसूरती और कई प्राचीन मंदिरो के लिए पूरे देश में जाना जाता है। यहां कई ऐसे मंदिर है जिनकी अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि बागेश्वर भगवान शिव का शहर है। अगर आपको भी कभी बागेश्वर जाने का मौका मिलें तो जाना न भूलें |
सुंदरढुंगा ग्लेशियर
सुंदरढुंगा ग्लेशियर को वैली ऑफ ब्यूटीफुल स्टोन्स भी कहा जाता है। विशाल भू-भाग में फैले इस ग्लेशियर पर पहुंचते ही आपको जन्नत का एहसास होगा। इस ग्लेशियर की खूबसूरती का जितना बखान किया जाए , उतना कम है। इस ग्लेशियर पर पड़ने वाली सूरज की किरणें आपके मन को मोह लेगी। यह ग्लेशियर खूबसूरती का एक अनोखा नमूना है। ऐसा लगता है मानो भगवान ने इस क्षेत्र को बड़े ही प्यार से बनाया होगा।
बागेश्वर का इतिहास।
बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहाँ बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, पुराणों के अनुसार यह निस्संदेह एक स्थान है जहाँ मनुष्य जन्म और मृत्यु की अनन्त बंधन से मुक्त हो सकता है। यह पूर्व और पश्चिम में भीलेश्वर और निलेश्वर पहाड़ों से और उत्तर में सूरज कुंड और दक्षिण में अग्नि कुंड से घिरा हुआ है, भगवान शंकर की यह भूमि का महान धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व है |
यह जिला धार्मिक गाथाओं, पर्व आयोजनों और अत्याकर्षक प्राकृतिक दृश्यों के कारण प्रसिद्ध है। प्राचीन प्रमाणों के आधार पर बागेश्वर शब्द को ब्याघ्रेश्वर से विकसित माना गया है। यह शब्द प्राचीन भारतीय साहित्य में अधिक प्रसिद्ध है। बागनाथ मंदिर, कौसानी, बैजनाथ, विजयपुर आदि जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। जिले में ही स्थित पिण्डारी, काफनी, सुन्दरढूंगा इत्यादि हिमनदों से पिण्डर तथा सरयू नदियों का उद्गम होता है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है।
स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान है। कुली-बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहाँ के लोगों ने अपने अंचल में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन शुरवात सन 1920 ई. में की।
सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया।
सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया।
बागेश्वर में स्थित पर्यटन स्थल व मंदिर।
बागनाथ मंदिर =
बागनाथ मंदिर की वजह से ही इस शहर का नामकरण हुआ है। बागेश्वर में स्थित बाघनाथ मंदिर में भगवान शिव विराजमान है। बागनाथ मंदिर गोमती और सरयू नाम नदिंयो के सगंम स्थल पर बना हुआ एक बेहद ही आलौकिक मंदिर है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर ऋषि मार्कण्डेय ने तप किया था और उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मार्कण्डेय को दर्शन भी दिए थे। कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव बाघ और माता पार्वती गाय पर घूमने आते हैं। इस मंदिर का निर्माण 1450 में कुमाऊं के राजा लक्ष्मी चंद ने करवाया था। यहां मकर संक्राति के समय में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है।
बागेश्वर नगर के उत्तर में सूर्यकुण्ड जबकि दक्षिण में अग्निकुण्ड स्थित है। ये दोनों सरयू नदी के विषर्प से जनित प्राकर्तिक कुंड हैं।
गौरी उड्यार २०x९५ वर्ग मीटर में फैली एक गुफा है, जिसमें भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर स्थित है। यह नगर केंद्र से ८ किमी की दूरी पर स्थित है।रयू नदी के विषर्प से जनित प्राकर्तिक कुंड हैं।
सूर्यकुण्ड तथा अग्निकुण्ड =
बागेश्वर नगर के उत्तर में सूर्यकुण्ड जबकि दक्षिण में अग्निकुण्ड स्थित है। ये दोनों सरयू नदी के विषर्प से जनित प्राकर्तिक कुंड हैं।
गौरी उड्यार =
गौरी उड्यार २०x९५ वर्ग मीटर में फैली एक गुफा है, जिसमें भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर स्थित है। यह नगर केंद्र से ८ किमी की दूरी पर स्थित है।रयू नदी के विषर्प से जनित प्राकर्तिक कुंड हैं।
चंडिका मंदिर =
यह सुंदर तथा प्राचीन चंडिका देवी का मंदिर है। यहां पर कई देवी देवताओ की प्रतिमाए भी स्थापित है। यहां पर नवरात्रो मे काफी भीड रहती है।
सुंदरढुंगा ग्लेशियर =
सुंदरढुंगा ग्लेशियर को वैली ऑफ ब्यूटीफुल स्टोन्स भी कहा जाता है। विशाल भू-भाग में फैले इस ग्लेशियर पर पहुंचते ही आपको जन्नत का एहसास होगा। इस ग्लेशियर की खूबसूरती का जितना बखान किया जाए , उतना कम है। इस ग्लेशियर पर पड़ने वाली सूरज की किरणें आपके मन को मोह लेगी। यह ग्लेशियर खूबसूरती का एक अनोखा नमूना है। ऐसा लगता है मानो भगवान ने इस क्षेत्र को बड़े ही प्यार से बनाया होगा।
पिंडारी ग्लेशियर 3353 मीटर की ऊंचाई के साथ नंदा देवी के किनारे स्थित है। वहीं सुन्दरढूंगा ग्लेशियर पिंडारी के दूसरी तरफ स्थित है। ये दोनों की पर्वतीय बिंदु हिमालय के अद्भुत दृश्य पेश करने का काम करते हैं
हवाई मार्ग- बागेश्वर से निकतम हवाई अड्डा पंतनगर 206 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग- बागेश्वर से निकटतम रेलवे स्टेशन कांठगोदाम 180 किलोमीटर है।
सडक मार्ग- बागेश्वर सडक मार्ग से सभी प्रमुख शहरो से जुडा है।
ठगोदाम रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। काठगोदाम उत्तर पूर्व रेलवे का अंतिम टर्मिनल है, जो कुमाऊं को दिल्ली, देहरादून और हावड़ा से जोड़ता है। टनकपुर से बागेश्वर को जोड़ने वाली एक नई रेल लाइन इस क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से मांग है। टनकपुर-बागेश्वर रेल लिंक को ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार सन 1904 में तैयार किया गया था। हालांकि रेलवे मंत्रालय ने 2016 में इस परियोजना को वाणिज्यिक व्यवहार्यता का हवाला देते हुए स्थगित कर दिया।
श्रीहाडु मंदिर =
बागेश्वर से करीब 5 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओ की मन्नतें पूरी होने के लिए प्रसिद है। यहां पर विजयदशमी के दिन मेला लगता है। जिसमें हजारो स्त्री पुरूष भाग लेते है।
पांडुस्थल =
मानयता है कि बैजनाथ के निकट स्थित पांडुस्थल में कौरवो व पांडवो के मध्य युद्ध लडा गया था।
बैजनाथ मंदिर =
बैजनाथ मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का विवाह यहां गूर नदी और गोमती नदी के संगम पर हुआ था। यह मंदिर बागेश्वर से लगभग 26 किमी दूर है।पिंडारी =
यदि आप एक साहसिक ट्रैवलर हैं, तो पिंडारी और सुन्दरढूंगा ग्लेशियर ट्रेकिंग का रोमांचक आनंद जरूर लें। पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा सुन्दरढूंगा ग्लेशियर से ज्यादा सरल मानी जाती है। ये दोनो ही स्थल रोमांचक ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध हैं, जो दूर-दराज के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने का काम करते हैं।पिंडारी ग्लेशियर 3353 मीटर की ऊंचाई के साथ नंदा देवी के किनारे स्थित है। वहीं सुन्दरढूंगा ग्लेशियर पिंडारी के दूसरी तरफ स्थित है। ये दोनों की पर्वतीय बिंदु हिमालय के अद्भुत दृश्य पेश करने का काम करते हैं
2011 की जनगणना के अनुसार, बागेश्वर की आबादी =
भारत की 2011की जनगणना के अनुसार, बागेश्वर की आबादी 9,079है जिसमें 4,711 पुरुष और 4,368महिलाएं की शामिल है।बागेश्वर का लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों के लिए 1100 महिलाएं है, जो राष्ट्रीय औसत (940महिलाएं प्रति 1000पुरुष) की तुलना में अधिक है। लिंग अनुपात के मामले में बागेश्वर उत्तराखंड में चौथे स्थान पर है।[बागेश्वर की औसत साक्षरता दर 80% है, जो राष्ट्रीय औसत 72.1% से अधिक है; 84% पुरुष और 76% महिलाएं साक्षर हैं। जनसंख्या का 11% ६ साल से कम उम्र के हैं। 2,211 लोग अनुसूचित जाति से संबंधित हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के लोगों की आबादी 1,084है। बागेश्वर की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 7,803थी और 1999 की जनगणना के अनुसार 4,772 थी।बागेश्वर कैसै पहुंचे ||devbhoomi uttrakhand
उत्तराखण्ड परिवहन निगम बागेश्वर स्थित बस स्टेशन से दिल्ली, देहरादून और बरेली तक बसों का संचालन करता है; जबकि केमू (कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन) द्वारा हल्द्वानी, अल्मोड़ा, ताकुला, बेरीनाग, पिथौरागढ़, डीडीहाट, गंगोलीहाट के लिए विभिन्न मार्गों पर 44 बसें चलाई जाती हैं।बागेश्वर से गुजरने वाली प्रमुख सड़कों में राष्ट्रीय राजमार्ग 309-A, बरेली-बागेश्वर हाईवे, बागेश्वर-गरुड़-ग्वालदाम रोड, बागेश्वर-गिरेछीना-सोमेश्वर रोड और बागेश्वर-कपकोट-तेज़म रोड शामिल हैं। टैक्सी और निजी बसें, जो ज्यादातर केमू द्वारा संचालित की जाती हैं, बागेश्वर को कुमाऊं क्षेत्र के अन्य प्रमुख स्थलों से जोड़ती हैं। एक उप क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय बागेश्वर में स्थित है जहां वाहन यूके--02 संख्या द्वारा पंजीकृत किये जाते हैंहवाई मार्ग- बागेश्वर से निकतम हवाई अड्डा पंतनगर 206 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग- बागेश्वर से निकटतम रेलवे स्टेशन कांठगोदाम 180 किलोमीटर है।
सडक मार्ग- बागेश्वर सडक मार्ग से सभी प्रमुख शहरो से जुडा है।
ठगोदाम रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। काठगोदाम उत्तर पूर्व रेलवे का अंतिम टर्मिनल है, जो कुमाऊं को दिल्ली, देहरादून और हावड़ा से जोड़ता है। टनकपुर से बागेश्वर को जोड़ने वाली एक नई रेल लाइन इस क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से मांग है। टनकपुर-बागेश्वर रेल लिंक को ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार सन 1904 में तैयार किया गया था। हालांकि रेलवे मंत्रालय ने 2016 में इस परियोजना को वाणिज्यिक व्यवहार्यता का हवाला देते हुए स्थगित कर दिया।
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