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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लाटू देवता सुमिरन || Latu devta Jager puja || Uttarakhand Jager puja|| जागर पूजा ||uttarakhandpankaj

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via https://youtu.be/MyDAyAgDjR0

जागर पूजा उत्तराखंड

उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 नमस्कार दोस्तों आज किस पोस्ट में हम जानेंगे। उत्तराखंड के प्रसिद्ध जागर पूजा उत्तराखंड में आयोजित की जाती है। वह किस रूप में लगती है, किस तरह से उसकी पूजा पद्धति है। इसके बारे में आप लोगों को आज की पोस्ट में जानकारी मिलेगी। सबसे पहले दोस्तों में जानते हैं कि   जागर क्या हो ? उत्तराखंड में जाकर पद्धति के बारे में बात करें तो उसके बारे में आप लोगों को यह बता दु कि जागर दो प्रकार की होती है। एक भीतेरी जागर और बाहरी जागर ,  जिसमें दिव्य शक्ति का समावेश किसी व्यक्ति पर मंत्रों द्वारा होना जागर का कहलाती है, उत्तराखंड के कुल देवताओं की जागर की पूजा की जाती है। लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर या फिर किसी और कामना के लिए जागर पूजा करते हैं, दिनों तक लगती है जागर जागर एक या 2 दिन ,या फिर 22 दिनों तक लगती है जिसे बायसी जागर कहा साथ ही जाकर के महत्वपूर्ण अंग हैं जगरिया  ड़गरीया, चुनी,गो मुत, गंगा जल,हुडुका, थाली आदि, उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से यह परंपरा उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ रही है क्योंकि लोग धीरे-धीरे उत्तराखं

म्यर पहाड़ ||Hit Myar pahad || हिट म्यर पहाड़ उत्तराखंड | pankaj uttarakhand

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भैरव देवता जागर || bhairav devta uttarakhand || BHAIRAV DEVTA JAGER || JAGER PUJA UTTARAKHAND

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via https://youtu.be/12L-DdkbOj8

गंगनाथ देवता जागर || || kumauni Jager || जागर kumauni || bhana gangnath Jager ||

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via https://youtu.be/Z0GiH2Kc8SY

ग्वेल देवता जागर|| कुमाऊनी जागर ग्वेल देवता ||golu devta Jager |कुमाऊनी जागर |Jager puja uttarakhand

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via https://youtu.be/KOq-Cw2_ECM

चन्द्र सिंह गढ़वाली जीवनी || बेड़ियों को “मर्दों का जेवर” कहा करते थे || uttarakhand pankaj

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उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏    उत्तराखण्ड हमेशा से वीरों की भूमि रहा है, इस धरती ने इन्हीं वीरों में से कुछ परमवीर भी पैदा किये। जिनमें चन्द्र सिंह गढ़वाली का नाम सर्वोपरि कहा जा सकता है। उन्होंने २३ अप्रैल, १९३० को अफगानिस्तान के निहत्थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोली चलाने से इन्कार कर एक नई क्रान्ति का सूत्रपात किया था और अंग्रेजी हुकूमत को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि भारत में उनके राज के कुछ ही दिन बचे हैं। हालांकि इस अजर-अमर विभूति की एक कमजोरी थी कि वह एक पहाड़ी था, जो टूट जाना पसन्द करते हैं लेकिन झुकना नहीं। चन्द्र सिह जी भी कभी राजनीतिज्ञों के आगे नहीं झुके, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि स्वतंत्रता संग्राम के इस जीवट सिपाही को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी जेल जाना पड़ा और कई अपमान झेलने पड़े। इनकी जीवटता को कभी भी वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। उनके अंतिम दिन काफी कष्टों में बीते, जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर लोग मलाई चाट रहे थे, वहीं गढ़वाली जी अपने साथियों की पेंशन के लिये संघर्ष कर रहे थे। इस अमर सेनानी को हमारा सलाम,

उत्तराखंड के लोक देवता भी अब पलायन करने लगे || कुमाऊं में 200 लोकदेवता ||

उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 uttarakhand devi devta part 1 उत्तराखंड के लोक देवता भी अब पलायन करने लगे🙏🙏 उत्तराखंड में गांवों के लोक देवता भी अब पलायन करने लगे हैं। कुमाऊं के गांव में बचे चंद *परिवारों के पलायन के बाद पहाड़ों पर लोक देवताओं के मू ल स्थान संकट में हैं। हालात ये हैं कि मंदिरों में सुबह-शाम दीपक जलाने के लिए भी लोग नहीं हैं। दशकों पहले पलायन कर चुके लोग इष्ट देवताओं के मंदिरों को भी तराई-भाबर में स्थापित करने लगे हैं| नैनीताल-ऊधमसिंह  नगर आकर बसे लोक देवता: मा न्य ता के अनुसार पहाड़ में जंगली जानवरों, आपदा जैसे खतरों से लोगों और उनकी फसलों की रक्षा करने वाले लोक देवताओं के सबसे अधिक मंदिर अब नै नी ताल जिले के मैदानी हिस्से में हैं| इतिहासकार इतिहासकार डॉ. प्रयाग जोशी बताते हैं कि देवताओं का यह पलायन राज्य बनने के बाद *अधिक तेजी से बढ़ा है। पिछले सालों में सबसे अधिक मंदिर हल्द्वानी, कालाढूंगी, लालकुआं और रामनगर में स्थापित हुए हैं। ऊधमसिंह नगर के खटीमा में बड़ी संख्या में पहाड़ के लो कदे वताओं के मंदिर हैं| इतिहासकारों

कलवा देवता || kalwa devta Jager || history of baba kalwa Pawan || कलवा देवता उत्तराखंड ||

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via https://youtu.be/d_aZxtqokO0   56 कलवे एक से अनेक कैसे हो गए 1👉कुछ तांत्रिक आज भी स्मशान से कलवे सिद्ध करके लाते है 2👉 56 कलवे गुगा राणा से पांच बावरी ने पाए गुगा ने ये माया गोरखनाथ से पाए थे 56 कलवे 64 योगिनी 52 भैरव आज भी 5 बावरी की शक्ति मे से एक साथ की शक्ति है 3👉भगत कहते है 56 कलवे नागे ने अपने धुनें से निकले सेवा मे ये स्मशान कैसे पहुच गए 4,👉बाबा कलवा पौन बाबा भैरव जैसे आग जैसे रूप के मालिक माने जाते है जैसे भैरव के रूप एक से अनेक नाम और जगह पर पूजा जाता है बाबा भैरव दारू का मुख्य भोग लेता है उसी तरह बाबा कलवा पौन किस किस के जोड़े मे चल देते कोई गुरु ही बता सकता है अगर बाबा कलवा पौन अकेला होता है तो दारू और खून की धार लेता है अक्सर सूअर की बलि दी जाती है पांच बावरी भी धुनें से निकले है गुरु नागे को पांच बावरी आज भी गुरु मानते है ये दुनिया जानती है 5 बावरी को कलवा चांदनी चौक पर छोड़ के भाग गया था उत्तर प्रदेश मे 56 कलवे (बाबा कलवा पौन)आज भी खरदौनी के मालिक माने जाते है ये रखवा गुरु के मान पर चलते है फिर भी कलवा पौन को भगत गुरु मार भी कहते है अगर कोई शक्ति अपने सेवक को ही म

कलुवा kalwa devta

उत्तराखंड 🇮🇳🇮🇳की सभ्यता संस्कृति🙏 #pankajdevbhoomi🙏🙏 कलुवा: ग्वेल देवता की कथा में जिस सिलबट्टे का जिक्र आता है, उसे ही कलुवा और राजा हलराय का पुत्र कहा जाता है। कहते हैं कि इनकी उत्पत्ति सिलबट्टे से हुई थी। गड़देवी के जागर में इनका जिक्र भी आता है। थान में इनके नाम पर खिचड़ी पकाई जाती है। इन्हें मुर्गे की बलि चढ़ती है। 56 कलवा का इतिहास 56 कलवों का पूरा इतिहास आज तक कोई जान नही पाया 56 कलवे एक से अनेक कैसे हो गए 1) कुछ तांत्रिक आज भी स्मशान से कलवे सिद्ध करके लाते है 2) 56 कलवे गुगा राणा से पांच बावरी ने पाए गुगा ने ये माया गोरखनाथ से पाए थे 56 कलवे 64 योगिनी 52 भैरव आज भी 5 बावरी की शक्ति मे से एक साथ की शक्ति है 3) भगत कहते है 56 कलवे नागे ने अपने धुनें से निकले सेवा मे ये स्मशान कैसे पहुच गए 4) बाबा कलवा पौन बाबा भैरव जैसे आग जैसे रूप के मालिक माने जाते है जैसे भैरव के रूप एक से अनेक नाम और जगह पर पूजा जाता है बाबा भैरव दारू का मुख्य भोग लेता है उसी तरह बाबा कलवा पौन किस किस के जोड़े मे चल देते कोई गुरु ही बता सकता है अगर बाबा कलवा पौन अकेला होता है तो दारू और खून की धार लेता ह

ऐड़ी देवता || उत्तराखंड || Aadhi devta temple || history of Aadhi devta || UTTARAKHAND ke Devi-devta

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via https://youtu.be/xOQKwoeYkvk ऐड़ी देवता कहा जाता है कि ऐड़ी देवता रात के समय घने जगलों के शिखरों पर घूमता है. शिकार के शौक़ीन ऐड़ी देवता कुत्तों के साथ घुमते हैं जिनके गले में घंटी बजी होती है. ऐड़ी देवता के चार हाथ होते हैं जिनमें वह धनुष बाण, तलवार, त्रिशूल, लोहे के डंडे इत्यादि पकड़े रहते हैं. आंचरी और चांचरी नाम की दो चुड़ेलें ऐड़ी देवता की अंग रक्षक होती हैं. ऐड़ी देवता की पालकी उनके दो सेवक साऊ और भाऊ उठाते हैं. ऐड़ी देवता भूत और परियों के साथ घुमते हैं. ऐड़ी देवता के विषय में माना जाता है  कि जो भी उसके कुत्तों का भौंकना सुन लेता है अवश्य कष्ट पाता है. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वैबसाइट में ऐड़ी देवता के विषय में लिखा गया है कि य यदि किसी पर ऐड़ी की नज़र पड़ गई, तो वह मर जाता है. उन लोगों के साथ ऐसा कम होता है जो अस्र-शस्रों से सुसज्जित रहते हैं. ऐड़ी का थूक जिस पर पड़ गया, तो विष बन जाता है. इसकी दवा ‘झाड़-फूँक’ है. ऐड़ी को सामने-सामने देखने से मनुष्य तुरंत मर जाता है, या उसकी आँखों की ज्योति चली जाती है, या उसे कुत्ते फाड़ डालते हैं, या परियाँ (आँचरी, कींचरी) उसक

हरू (हरूज्यू ) देवता || उत्तराखंड || haru devta ki kahani || harju baisi || haru devta history ||

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via https://youtu.be/tKYxi0Adics Devbhoomi uttarakhand कुमाऊं के लोक देवता। हरू हरु एक अच्छी प्रवृत्ति शुध्द आचरण और दैवीय शक्ति से परिपूर्ण सात्विक देवता हैं। हरू की पूजा पूरे कूर्मांचल में बड़ी श्रध्दा से पूजा होती है। कहते हैं चंपावत के राजा थे हरीशचंद्र। वे राजपाट छोड़कर तपश्वी हो गये और हरिद्वार में रहने लगे। ऐसी कहावत है हरिद्वार में हरि की पैड़ी हरू देवता ने ही बनाई। उन्होंने चारों धाम जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, बद्रीनाथ और द्वारिकापुरी की परिक्रमा की। चारों धामों से लौटकर चंपावत में ही अपना जीवन दीन दुखियों की सेवा व धर्म कर्म में व्यतीत करने लगे। हरूज्यू नेअपना एक भ्रातिमंडल भी बनाया। उनके भाई लाटू व सेवक स्यूरा, प्यूरा, रूढ़ा कठायत, खोलिया, मेलिया, मंगलिया, उजलिया सब उनके शिष्य हो गए और राजा हरू उनके गुरू हो गए। तपस्या, सदाचार, ध्यान व योग के कारण हरज्यू सर्वत्र पूजे जाने लगे। उनकी कृपा से अपुत्र को पुत्र, निर्धन को धन, दुखी सुखी होने लगे, अंधे देखने लगे, लंगड़े चलने लगे, धूर्त सदाचारी होने लगे। देहावसान के बाद हरूज्यू के मंदिर बनाकर पूजा होने लगी। कुमाऊं में यह बात प्रचल