उत्तराखंड लोक पर्व बिखोती || Bikhoti festivals in Hindi || bikhoti mela Uttarakhand
via https://youtu.be/8JqPX1XQcKo
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उत्तराखंड की संस्कृति और इतिहास |
प्रत्येक साल बैसाख माह के पहली तिथि को भगवान सूर्यदेव अपनी श्रेष्ठ राशी मेष राशी में विचरण करते हैं।इस स्थिति या संक्रांति को विषुवत संक्रांति या विशुवती त्योहार या उत्तराखंड की लोक भाषा कुमाऊनी में बिखोती त्योहार कहते हैं।
विषुवत संक्रांति को विष का निदान करने वाली संक्रांति भी कहा जाता है। कहा जाता है, इस दिन दान स्नान से खतरनाक से खतरनाक विष का निदान हो जाता है। विषुवत संक्रांति के दिन गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। बिखौती का मतलब भी कुमाउनी में विष का निदान होता है।
बिखौती त्यौहार को कुमाऊ के कुछ क्षेत्रों में बुढ़ त्यार भी कहा जाता है। बुढ़ त्यार का मतलब होता है, बूढ़ा त्यौहार
बिखौती त्यौहार को बुढ़ त्यार ( बूढ़ा त्यौहार ) क्यों कहते है
गांव के बड़े बूढे लोग बताते हैं ,कि विषुवत संक्रांति के दिन बिखौती त्यौहार के बाद लगभग 3 माह के अंतराल बाद कोई त्योहार आता है। मतलब सूर्य भगवान के उत्तरायण स्थिति में यह अंतिम त्यौहार होता है। इसके 3 माह बाद पहाड़ में हरेला त्योहार आता है। हरेला त्योहार सूर्य भगवान कि दक्षिणायन वाली स्थिति में पड़ता है। अपनी सीरीज का अंतिम
त्यौहार होने की वजह से इसे कुमाऊँ की लोक भाषा मे बुढ़ त्यार या बुढ़ा त्यौहार कहते हैं
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बिखोती मेला द्वाराहाट |
लोक पर्व बिखौती के दिन नई फसलों का भोग अपने देवी देवताओं को लगाते हैंं।
पूरी पकवान बनाये जाते हैं। पहाड़ो में संवत्सर प्रतिपदा के दिन कुल पुरोहित आकर सबको संवत्सर सुनाते हैं। अर्थात सारे साल भर का राशिफल बता कर जाते हैं। इसमे देश दुनिया के राशिफल के साथ व्यक्ति विशेष के राशिफल भी बताते है। जिनकी राशी में वाम पाद दोष होता है, वो बुढ़ त्यार के दिन, शिवालय में जल चढ़ाकर एवं पाठ कराकर अपना वाम पाद दोष शांत कराते हैं।
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