गोपेश्वर महादेव उत्तराखंड || Gopeswar Mahadev ||Gopeswar mahadev | Gopeswar Temple ||Gopeswar Mandir


via https://youtu.be/bdK5i1SlO08

इस प्राचीन शिव मन्दिर की बहुत मान्यता है। कहा जाता है कि जब शंकर जी की इच्छा भगवान की रासलीला देखने की हुए तो वे गोपी का रूप धारण कर वृन्दावन आये उसी स्मृति में यह शिव मन्दिर बना है।

भगवान कृष्ण की लीला का आनंद लेने एक बार भोलेनाथ भी कृष्ण नगरी गोपी का रूप रखकर पहुंचे थे। महादेव के उस रूप को गोपेश्वर महादेव कहा गया। ... गोपेश्वर महादेव विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां महादेव गोपी रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान शिव का गोपियों की तरह सोलह श्रंगार कर पूजन किया जाता है।
गोपेश्वर महादेव मंदिर वृंदावन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि यहां मौजूद शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने की थी. जानिए गोपेश्वर महादेव इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी.
उन्होंने कहा कि इस महारास में सिर्फ महिलाएं ही शामिल हो सकती हैं. इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें सुझाव दिया कि वो गोपी के रूप में महारास में शामिल हों और इसके लिए यमुना जी की मदद लें. यमुना जी ने महादेव के आग्रह पर उनका गोपी के रूप में श्रृंगार किया. इसके बाद महादेव गोपी रूप में महारास में शामिल हुए.
इसके बाद इस रूप में कृष्ण भगवान ने उन्हें पहचान लिया और महारास के बाद स्वयं अपने आराध्य महादेव की पूजा की और उनसे इस रूप में ब्रज में रहने का आग्रह किया. तब राधारानी ने कहा कि महादेव के गोपी के रूप को गोपेश्वर महादेव के नाम से जाना जाएगा. तब से लेकर आज तक गोपेश्वर महादेव के मंदिर में उनका महिला की तरह सोलह श्रंगार किया जाता है, इसके बाद ही पूजा अर्चना होती है. महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में भक्तों की खासी भीड़ जुटती है.

देवभूमी के इस मंदिर में गढ़ा है शिव जी का त्रिशुल, भक्तों द्वारा छूने पर होती है कंपन
गोपीनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले गोपेश्वर में शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह गोपेश्वर शहर के एक भाग में गोपेश्वर गांव में स्थित है। इस मंदिर में एक अद्भुत गुंबद और 24 दरवाजे हैं । इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं एवं भगवान सारे भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं , गोपीनाथ मंदिर , केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। मंदिर पर मिले भिन्न प्रकार के पुरातत्व एवं शिलायें इस बात को दर्शाते है कि यह मंदिर कितना पौराणिक है। मंदिर के चारों ओर टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष प्राचीन काल में कई मंदिरों के अस्तित्व की गवाही देते हैं। मंदिर के आंगन में एक त्रिशूल है, जो लगभग 5 मीटर ऊंची है, जो आठ अलग-अलग धातुओं से बना है, जो कि 12 वीं शताब्दी तक है। यह 13 वीं सदी में राज करने वाले नेपाल के राजा अनकममाल को लिखे गए शिलालेखों का दावा करता है।



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