कोट भ्रामरी मंदिर || HISTORY of KOT BHRAMARI TEMPLE || KOT MANDIR DANGOLI BAGESHWAR ||मां नन्दा देवी


via https://youtu.be/QsfGA35G4Kk

र्कोर्ट की माई उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर जनपद के प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर समूह के लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी पर अवस्थित कोर्ट की मां ब्राह्मणी देवी का नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर  इस लिए महत्वपूर्ण है कि यहां पर कवियों के कुलदेवी ब्राह्मणी और चंदू की कुलदेवी नंदा की सामूहिक अर्चना की जाती है। ब्राह्मणी देवी का विवरण दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में प्राप्त होता है। नंदा के संबंध में यह जनहित प्रचलित है कि जब तक।शासक नंदा की शीला को गढ़वा से अल्मोड़ा के लिए ले जा रहे थे तो रात्रि विश्राम हेतु इसके निकट स्थान झाली माझी गांव में रुके थे। अपने अगले दिन प्रातः काल किसे ले जाने के लिए सब सेवकों ने इसे उठाना चाहा तो शीला को उठाना तो क्या वह उनसे 1 इंच भी नहीं मिल सकी। वह सब हताश होकर बैठ गए। जब ब्राह्मणों ने राजा को सलाह दी तो देवी का मन यहां रम गया। वहां यही रहना चाहती है तथा इसकी यहीं पर स्थापना कर दे। सदा अनुसार झाली माझी। गांव में ही एक देवालय का निर्माण करवाया कर वहीं पर।     
   स्थापना कर देता था। अनुसार झाली माझी गांव में एक दे वाले का निर्माण करवाया कर वहीं पर उसकी प्रतिष्ठा करवा दी गई और कई वर्षों तक उसकी पूजा आराधना की जाती रही। किंतु बाद में ब्रह्माणी देवी के साथ ही नंदा की स्थापना भी की गई और इसकी पूछना नंदा प्राइमरी के रूप में की जाने लगा। चैत के तथा भाद्रपद मास के नवरात्रों में यहां पर विशेष उत्सव का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त यहां पर भारत मां की सप्तमी की रात्रि को जागरण होता है, जिसमें परम परंपरागत रूप से कौन-कौन आई के बोरा जाति के लोग द्वारा नंदा के निर्णय को का गायन किया जाता है। इन सामूहिक कथा की तो मैं एक तरफ से पुरुषों और महिलाओं को सहभागिता हुआ करती है। इसके गाना ई ओलाख तुल्य द्वारा। नाक तो को की मराठी ब्राह्मणों के परिवारों के नंदा देवी का उदाहरण भी।गेटी अंसारी के लोगों के द्वारा केले के पौधों के तनों में नंदा देवी के ठिकाने बनाए जाते हैं तथा अगले दिन यानी अष्टमी को देवी की पूजन तथा बलिदान दिया किया जाता है। मंदिर में पूजा-अर्चना का दायित्व तेल हल्दी घाटी के त्योहारों का हुआ करता था। चमोली दानपुरा, मेवाड़ी, सोमेश्वर तथा।तथा बोलेरो की जनता की बहू मान्य देवी होने के कारण इन क्षेत्रों के लोगों भी शुभ मांगलिक अवसरों पर यहां आकर अपने श्रद्धा सुमन चढ़ाने आते हैं। इसके अतिरिक्त चैत मास की नवरात्रि के अष्टमी को भी यहां पर पूजा उत्सव का आयोजन होता है जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भागीदारी रहती। आनंदा के रूप में इसका संबंध नंदा की रात से भी संबंध नॉटी के आयोजित किए जाने वाले नंदा जात की सम्मानित होने के लिए अल्मोड़ा में प्रस्थान करने वाली जात का दूसरा रात्रि विश्राम यही होता है। यहीं से राजघाट के जाने वाली देवी को शुभ कतार को ले गया जाता है। इसकी ग्वालदम दे वाले होते हुए नंदा केसरी के प्रधान जात के सम्मिलित होती है तथा राजनाथ के सम्मानित पर पुलिस के यहीं आकर। पित्त कर दिया जाता
करीब 2500 वर्ष पूर्व में सातवीं एकादशी तक यहां पर कत्यूरी राजाओं का शासन रहा। इन्हें कत्यूरी राजाओं के कश्मीर घाटी के महत्वपूर्ण स्थानों को किले के रूप में स्थापित किया था। वर्तमान कोर्ट मंदिर को ही किले का रूप दियाकोट भ्रामरी मंदिर की स्थापना का संबंध में कहा जाता है। कछुए क्षेत्र के अरुण नामक दैत्य का बेहद आतंक था। उसी दौरान कद्दू राजा आतंकी देश और बसंती देव कश्मीर की राजधानी बनाने की सोच रहे थे। दैत्य से पीड़ित जनता ने।तब राजा उसे भगवती मां से 10 तक के आतंक से निजात दिलाए जाने की प्रार्थना की राजाओं द्वारा विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद मैया भैरव के रूप में प्रकट हुई। तब तथा मैया ने अरुण नामक दैत्य का वध कर दिया। तब कहीं जाकर जनता को दैत्य के आतंक से मुक्ति मिली। मैया की स्थित करना कृपया से हारा यह मैया ने भंवर के रूप में पूजा की जाती

आइए जानते हैं पुजारी जी करता कहते हैं


 भ्रामरी के साथ  आपको न भैरव देवता का मंदिर मिलता  है और माता के मंदिर के समीप स्थित होता है।  भैरव देवता  का मंदिर।पहले नंदा की मूर्ति नीचे झाली माली गांव में अभी आप नंदा ऑरकुट नामली की स्थापना दोनों की स्थापना एक काम कर दी गईजॉइन आई गांव में मैया का सिंगार रखा गया है। मैया का सिंगार का सामान वहीं से आता हैदिनाय के बोरा लोगों के पास मैया का सिंगार का सामान रखा गयाअरुण नाम का दैत्य था, उसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था।

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